अपधावन, अपवाह या जल बहाव ( Run-off )

Agriculture Studyy
6 min readJun 24, 2020

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अपधावन या अपवाह किसे कहते है यह कितने प्रकार का होता है एवं इसे प्रभावित करने वाले कारक ( What is called erosion or runoff What type of it is and factors affecting it )

अपधावन, अपवाह या जल बहाव ( Run-off in hindi )

अपधावन या अपवाह क्या है ( What is erosion or runoff )

वर्षा के रूप में गिरने वाला . कुल जल निम्न भागों में बँट जाता है-

1 . कुछ भाग भूमि में रिस कर नीचे चला जाता है जो अंतत : भूमिगत जल का स्रोत बनता है ।

2 . कुछ भाग का वाष्पन हो जाता है ।

3 . कुछ भाग वनस्पतियों इत्यादि द्वारा उपयोग कर लिया जाता है ।

4 . शेष बचा भाग भूमि सतह के ऊपर स्थान विशेष की भौगोलिक स्थिति के अनुसार नदी , नालों में बहता रहता है अथवा तालाबों व झीलों आदि में इकट्ठा हो जाता है

अपधावन या अपवाह की परिभाषा ( Definition of drainage or runoff )

पृथ्वी सतह पर प्राकृतिक धाराओं के रूप में बहने वाले पानी को अपवाह कहते हैं ।
अपवाह को सामान्यतः पानी की कुल मात्रा अर्थात् आयतन में अथवा निस्सरण ( discharge ) के रूप में नापा जाता है ।

क्षेत्र स्थिति समय तथा मात्रा के अनुसार अपधावन निम्नलिखित प्रकार का होता है-

( 1 ) पृष्ठीय अपधावन ( Surface run — off ) -

जब वर्षा का जल भू — सतह पर सीधे बहकर चलता है तो यह पृष्ठीय अपधावन कहलाता है । पृष्ठीय अपधावन सर्वाधिक हानिकारक होता है क्योंकि यह भूमि की ऊपरी उपजाऊ परत को अपने साथ बहा कर ले जाता है ।

( 2 ) अधोसतह अपधावन ( Sub — Surface run — off ) -

भूमि की अधो सतह सख्त ( कठोर ) होने के कारण जब वर्षा का जल पृष्ठीय स्रवण ( Infilteration ) के द्वारा जमीन के अन्तर नहीं जा पाता तब ऐसी स्थिति में जल का अधो — सतह अपधावन प्रारम्भ हो जाता है ।

इस स्थिति में जल भू — सतह तथा अधोसतह के मध्य निचले स्थान की ओर बहने लगता है ।

( 3 ) सरिता या अवनालिका अपधावन ( Stream or gully Run — off )

जब वर्षा का जल नदियों , नालों के माध्यम से बहता है तो इस प्रकार के अपधावन को अवनालिका अपधावन कहते है।

अपधावन या अपवाह को प्रभावित करने वाले कारक ( Factors Affecting Run — Off )

अपवाह को प्रभावित करने वाले मुख्य तत्व निम्न प्रकार हैं-

अपवाद क्षेत्र में वर्षा की तीव्रता अधिक होती है तो अपवाह की मात्रा भी अधिक होती है क्योकि पनि . को उपशाम अधिक हो लेकिन उसकी की मात्रा रिसन एवं वाष्पन रिसन एवं वाष्पीकरण के लिये कम समय मिलता है ।

यदि वर्षा की मात्रा अधिक होली तीव्रता कम हो तो अपवाह की मात्रा कम ही होती है क्योंकि पानी की काफी मात्रा रिसन में नष्ट हो जाती है ।

अपवाह क्षेत्र में कुल वर्षा की मात्रा जितनी अधिक होगी अपवाह उतना ही अधिक होगा ।

यदि अपवाह क्षेत्र की ( soil ) पारगम्य ( pervious ) जैसे रेतीली ( sandy ) या सिल्ट युक्त हो तो पानी की काफी रिसन द्वारा नष्ट हो जायेगी , फलस्वरूप अपवाह कम होगा ।

यदि अपवाद मृदा चट्टान युक्त ( rocky ) या मण्यम ( clayey ) हे तो रिसन द्वारा अपेक्षाकृत कम पानी नपा और अपवाह अधिक होगा ।

यदि अपवाह क्षेत्र का ढाल अधिक होगा तो अपवाह भी अधिक होगा क्योंकि ढाल से पानी शीघ्र ही ड्रेनेज में पहुंच जायेगा और रिसनव वाष्पन के लिये कम समय मिलेगा जिससे अधिक पानी नष्ट नहीं होने पायेगा ।

यदि अपवाह क्षेत्र में गडढ़े होंगे तो उनमें काफी पानी रूक जायेगा और अपवाह कम हो जायेगा ।

( अ ) — पंखे की आकृति ( Fan shaped ) का अपवाह क्षेत्र

( ब ) — पत्तीनुमा ( Fern shaped ) का अपवाह क्षेत्र

( 4 ) अपवाह क्षेत्र का आकार एवं विस्तार ( Shape and size of the Catchmer area ) -

अपवाह क्षेत्र जितना बड़ा होगा , स्पष्टत : अपवाह भी उतना ही अधिक होगा ।

इसके सा ही पंखे की आकृति ( fan shaped ) वाले अपवाह क्षेत्र से अधिक अपवाह आयेगा क्योकि इ आकार के क्षेत्र में सभी सहायक नदियोलर पानी कम समय में ही एक साथ डेन में आयेगा ।

पत्तीनु ( fern or leaf shaped ) क्षेत्र में आने वाली सहायक नदियों का पानी अधिक समय में विभाजित किया जाता है।

( 5 ) वनस्परिक आवरण ( Vegetation Cover ) -

अपवाह क्षेत्र में यदि घास — फूस ए पेड़ — पौधे हैं तथा वह हरा — भरा है तो कुछ समय के लिये पानी उनमें रूक जाता है जिससे अपवा कम मिलता है ।

( 6 ) तापमान ( Temperature ) -

यदि अपवाह क्षेत्र में तापक्रम अधिक होता है तो पानी व काफी अश वामन द्वारा नष्ट हो जाता है जिसके फलस्वरूप कम अपवाह प्राप्त होता है ।

अपधावन या अपवाह को मापने वाली विधियों ( Methods for measuring erosion or runoff )

किसी क्षेत्र में जल के उपयोग सम्बन्धी योजनाये जैसे सिंचाई योजना , जल विद्युत परियोजना एवं आपूर्ति आदि योजनायें बनाने के लिये उस क्षेत्र की नदियों में आने वाले औसत वार्षिक अपवाह का जानना अत्यन्त आवश्यक है ।

इस उद्देश्य के लिये अपवाह का सही अनुमान लगाना अत्यन्त महत्वपूर्ण है । अपवाह के कम अनुमान से निर्मित संरचनायें ध्वस्त हो सकती हैं तथा अधिक अनुमान पर आधारित संरचनाओं की लागत अधिक आयेगी और वे पूर्ण क्षमता से काम नहीं कर सकेंगी ।

अत : अपवाह का सही अनुमान लगाना अत्यन्त महत्वपूर्ण है ।

1 . वर्षा के आँकड़ों पर

2 . वास्तविक निस्सरण मापन द्वारा

3 . अनुकल्पित सूत्रों द्वारा

4 . अपवाह वक्रों व सारणियों द्वारा

यदि पिछले 35 वर्षों के वर्षा के आँकड़े उपलब्ध हैं तो एक वर्ष में औसत वार्षिक वर्षा का मान निकाला जा सकता है ।

अपवाह क्षेत्र के अनुरूप उपयुक्त अपवाह गुणांक मान कर अपवाह की गणना की जा सकती है ।

विभिन्न शोधकर्ताओं ने अपवाह क्षेत्र की विशिष्टियों के आधार पर अपवाह गुणांक संस्तुत किये हैं ।

यह विधि केवल छोटे क्षेत्रों के लिये ही इस्तेमाल की जा सकती है । इस विधि से प्राप्त अपवाह के मान को केवल प्रारम्भिक गणनाओं के लिये ही प्रयोग किया जा सकता है क्योकि यह मान शुद्ध नहीं होता हैं।

इस विधि में किसी नदी या नाले का निरन्तर पूरे वर्ष वास्तविक निस्सरण नापा जाता है और इससे औसत वार्षिक अपवाह ज्ञात किया जाता है । सम्पूर्ण वर्ष में हुई वर्षा के मान को यदि औसत वार्षिक अपवाह से भाग दे दिया जाये तो इस क्षेत्र के लिये अपवाह गुणांक ज्ञात हो जायेगा ।

अब यदि पिछले 30–35 वर्ष के वर्षा के आँकड़े ज्ञात हो तो ऊपर ज्ञात किये गये अपवाह गुणांक से गुणा करके प्रत्येक वर्ष में उपलब्ध अपवाह जल की मात्रा ज्ञात की जा सकती है ।

समय — समय पर बहुत से शोधकर्ताओं ने अपने — अपने शोध क्षेत्र के लिये वर्षा एवं अपवाह के बीच सीधे सम्बन्ध स्थापित किये हैं ।

ये सूत्र सर्वव्यापी ( universal ) नहीं है और केवल उसी क्षेत्र विशेष के लिये ही मान्य है जिनके लिये इन्हें स्थापित किया गया है ।

प्रत्येक अपवाह बेसिन ( drainage basin ) में बेसिन का अपवाह क्षेत्र ( catchment area ) तथा वर्षा के लक्षण भिन्न — भिन्न होते हैं ।

इसीलिये वर्णित सूत्र सर्वव्यापी नहीं है । लेकिन किसी क्षेत्र विशेष के लिए उपरोक्त लक्षण लगभग समान ही रहते हैं ।

अपवाह व वर्षा का मान एक बार निकाल लिया जाता है , जिसको आगे की गणनाओं के लिए आधार माना जाता है ।

कुछ पानी वाष्पना नष्ट हो जाता है तथा शेष पानी सतह पर रह जाता है , जिसे सतही पानी या पष्ठ यह सतही पानी क्षेत्र के सबसे निचले क्षेत्र अर्थात् ड्रेनेज लाइन में पहुंच कर सरिता व नदी बहने लगता है ।

किसी ड्रेनेज ( नदी , नाले आदि ) में जिस क्षेत्र का वर्षा का पानी बह कर वह उस ड्रेनेज का अपवाह क्षेत्र कहलाता है ।

ड्रेनेज के विभिन्न बिन्दुओं पर अ भिन्न भिन्न होता है । ड्रेनेज के किसी बिन्दु पर अपवाह क्षेत्र उससे ऊपर के भाग में से विभाजक रेखाओं ( Watershed lines ) के बीच घिरा क्षेत्र है । नदियाँ अपना पानी अपने क्षेत्र से ही प्राप्त करती हैं ।

वह पानी जो अपवाह क्षेत्र से बह कर ड्रेनेज में आता है । (Run — off ) कहलाता है ।

अपवाह को वर्षा की भाँति अपवाह क्षेत्र पर पानी की गहराई में नाण है । डेनेज का अपवाह बाढ़ नियंत्रण , सिंचाई , पन बिजली , घरेलू उपयोग , उद्योग एवं अन्य कार लिये बहुत महत्वपूर्ण है ।

नदी एव नाले का अपवाह क्षेत्र जितना अधिक होगा उनमें निस्सरण ( discharge ) उतना ही अधिक आयेगा ।

नदियाँ जैसे — जैसे नीचे की तरफ ( down stream ) आती हैं उनका अपवाह क्षेत्र बढ़ता चला जाता है और इसीलिये नदियों का निस्सरण नीचे की तरफ निरन्तर बढ़ता चला जाता है ।

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