उत्तर प्रदेश में वानिकी का विकास
उत्तर प्रदेश में कृषि वानिकी का विकास ( Development of agro-forestry in Uttar Pradesh )
उत्तर प्रदेश में वानिकी का विकास ( Development of Forestry in Utter Pradesh )
देश में 1861 में वन विभाग के संगठन का श्रीगणेश हुआ जबकि उत्तर प्रदेश वर्ष 1868 में सर्वप्रथम वन विभाग की स्थापना हुई ।
जिसके प्रधान एक आरण्यपाल नियुक्त किये गये , किन्त उत्तर प्रदेश में अन्य स्थानों की अपेक्षा वन सम्पदा के निर्माण तथा सम्वर्धन का कार्य कठिन था ।
सबसे पहले कार्यकर्ताओं को सर्वेक्षण करना पड़ा और मार्ग — विहीन , दर्गम , निर्जन एवं वन्य जन्तओ से पूर्ण वनों के विस्तृत क्षेत्रों की जाँच , व्याख्या एवं सीमांकन आटिका पडा ।
वनों को अग्निदाह और अन्य क्षति से बचाने के लिए ऐसा करना आवश्यक था . ताकि मल्यवान वक्षों की गणना करके समुपयोजन की व्यवस्था की जा सके तथा न्याय व माल विभाग के अधिकारियों के सहयोग से वनों में आस — पास की जनता के अधिकारों को पूर्ण रूप से लेखबद्ध किया जा सके ।
सबसे कठिन एवं आवश्यक कार्य था अनेक पीढ़ियों से प्रचलित कुप्रथाओं और कुरीतियों को मिटाना । अनियंत्रित चराई , शाख तराशी , अवैध कटान , द्वेषपूर्ण अग्नि प्रज्जवलन , शीघ्र धनी बनने की लालसा रखने वाले ठेकेदारों को स्वार्थपूर्ण कार्यविधि तथा इसी प्रकार के अन्य कुकृत्यों से राज्य के वन लगभग आधी बर्बादी की दशा में पहुँच चुके थे ।
इसलिए अनेक वर्षों तक वन विभाग समुपयोजन की अपेक्षा संरक्षण के कार्य में ही लगा रहा ।
एक प्रकार से वन संरक्षण नीति ही प्रारम्भिक वन प्रशासन की आधारशिला है । बाद के वर्षों में , विशेष रूप से स्वतंत्रता के बाद प्रदेश में वानिकी कार्यक्रम का विस्तार हुआ ।
प्रदेश में वानिकी का संवैधानिक एवं कानूनी पक्ष
स्वतंत्रता उपरांत भारत वासियों ने अपना जो संविधान बनाया उसमें वानिकी के महत्त्व को स्वीकारते हुए इसके संरक्षण एवं विकास के लिए स्पष्ट प्रतिबद्धता दर्शाई गई ।
भारतीय संविधान के में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया कि “ राज्य देश के पर्यावरण संरक्षण तथा संवर्धन का और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा ।
“ वर्ष 1976 में संविधान के 42 वें संशोधन में भाग 4 ‘ क ‘ के रूप में जोड़े गए अनुच्छेद 51 ‘ क ‘ खण्ड घ में देश के प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य निर्धारित किया गया है ।
कि वह “ प्राकृतिक पर्यावरण , जिसके अन्तर्गत वन , झील , नदी और वन्य जीव हैं की रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणिमात्र के प्रति दयाभाव रखे ।
‘ साथ ही भारतीय संविधान के 42 वें संशोधन के उपरान्त वन समवर्ती सूची में आ गया है ।
केन्द्र सरकार द्वारा 1980 में पारित वन संरक्षण अधिनियम 1980 के अनुसार वन भूमि को वनेत्तर प्रयोग में लाने के लिए कन्द्र सरकार की पूर्वानुमति अनिवार्य हो गई है ।
यह सभी घटनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर वनों के प्रबन्धन की आवश्यकता को प्रकट करती है ।
जिनका सीधा प्रभाव हमारे प्रदेश ( उत्तर प्रदेश ) वन — सपपाट और पर्वतीय क्षेत्रभिवहन नियमावर्ड । इसका प्रमुख 128 के वन प्रबन्ध पर भी पड़ता है ।
प्रदेश में वृक्ष पातन को रोकने के लिए 1976 में उत्तर प्रदेश ग्रामीण और पर्वतीय क्षेत्र में वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1976 बनाये गये ।
प्रदेश में 1978 में इमारती लकड़ी एवं वन उपज अभिवहन नियमावली लागू हुई ।
उत्तर प्रदेश में 1979 में विश्व बैंक द्वारा पोषित परियोजना ‘ सामाजिक वानिकी ‘ लागू हुई ।
इसका प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण जनता की ईंधन , चारा , लघु प्रकाष्ठ , गैर प्रकाष्ठ , वनोपज आदि की मांग की पूर्ति करना तथा ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के साधन उपलब्ध कराकर उनको गरीबी रेखा से ऊपर उठाना रहा है ।
उत्तर प्रदेश में वन अनसंधान का कार्य वर्ष 1918 में राज्य वन वर्धनिक के रूप में स्मिथीज के भारतीय वानिकी सेवा की तैनाती के साथ प्रारम्भ हुआ ।
कालान्तर में वन अनसंधान की गतिविधियों में विस्तार की प्रक्रिया में दो और वन वर्धनिकों की तेनाती की गई ।
वन क्षेत्रों की उत्पादकता में वृद्धि की महती आवश्यकता को अनुभव किया गया एवं इस दिशा में सघन कार्य हेत वर्ष 1970 में कानपुर में राज्य वन अनुसंधान प्रयोगशाला स्थापित की गई जिसे वर्ष 1993 में वन अनुसंधान संस्थान , उत्तर प्रदेश के रूप में उच्चीकृत किया गया ।
उत्तर प्रदेश में वन अनुसंधान के निम्न प्रमुख उत्क्रम क्षेत्र है -
( 1 ) वृक्ष सुधार कार्यक्रम के माध्यम से वनों की उत्पादकता में वृद्धि करना ।
( 2 ) मातृ वृक्षों से प्राप्त उच्च गुणवत्ता के बीज की आपूर्ति करना ।
( 3 ) वृक्षारोपण की दृष्टि से समस्याग्रस्त क्षेत्रों हेतु रोपण तकनीकों का विकास करना ।
( 4 ) औषधीय पौधों का उनके प्राकृतिक क्षेत्रों के भीतर एवं अन्यत्र संरक्षण करना ।
( 5 ) उपयुक्त कृषि वानिकी मॉडलो का विकास करना ।
( 6 ) पारिस्थितिकी एवं प्रदूषण सम्बन्धी अध्ययन करना ।
( 7 ) प्रशिक्षण , तकनीकी बुलेटिनों एवं प्रयोगशाला से भूमि तक पत्रकों के प्रकाशन के माध्यम से परिणामों का विकीर्णन करना ।
उत्तर प्रदेश में वानिकी की समस्या एवं निदान
प्रदेश की भौगोलिक स्थिति के कारण वानिकी कार्यों में अनेक प्रकार की तकनीकी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं , जैसे — ऊसर , बीहड़ , खारे पानी के क्षेत्र , टेनरी के रासायनों , प्रदूषित जल , तराई क्षेत्र की खादर खोला भूमि , पर्वतीय क्षेत्रों की अवनत भूमि , ईंधन एवं चारा पत्ती तथा औद्योगिक प्रजातियों के रोपण आदि ।
उक्त वर्णित समस्याओं के निदान हेतु वानिकी से सम्बन्धित अनुसंधान कार्यों को प्रारम्भ किया गया , जिससे उन समस्याओं का निराकरण कर भौगोलिक स्थिति के अनुसार , प्रजातियों का चयन कर उपयुक्त स्थानों पर रोपित किया गया ।
जिससे वनों के क्षेत्र को बढ़ाने में काफी सफलता प्राप्त हुई है । प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव शहरी क्षेत्रों में भी पड़ा है ।
जिससे शहरी क्षेत्रों में पर्यावरणीय प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हुई है , जिसे दूर करने हेतु विभाग द्वारा शहरी क्षेत्रों की सुन्दरता को बढ़ाने तथा प्रदूषण को कम करने हेतु विभिन्न प्रकार की उपयुक्त प्रजातियों का रोपण किया गया है ।
वानिकी कार्यों का बढ़ाने में अनुसंधान का विशेष महत्त्व है । अनुसंधान द्वारा वानिकी कार्यों में उत्पन्न हो रहा तकनीकी समस्याओं का निराकरण करने के साथ — साथ समय समय पर नई तकनीकी जानकारा भी उपलब्ध करायी गई है ।
वर्तमान में अनुसंधान द्वारा क्लोनल तकनीक से पौधे तैयार करन का कार्य सफलतापूर्वक किया जा रहा है ।
विभाग की विभिन्न पौधशालाओं में थैली के स्थान पर मटटेनर करके पौध उगाने का कार्य सफलतापूर्वक किया जा रहा है ।
वन अनुसंधान द्वारा विभिन्न प्रजातियों के उच्च कोटि के बीजों का एकत्रीकरण कार्य भी किया जाता है तथा एकत्रित बीजों को परीक्षण के उपरान्त वन प्रभागों को आपूर्ति किया जाता है ।
उच्च गुणवत्ता एवं अनवांशिकी की बीज आपूर्ति हेतु पूरे उत्तर प्रदेश में भिन्न प्रजातियों को धनात्मक वृक्ष / बीज वक्ष बीज उत्पादन क्षेत्र तथा क्लोनल बीज उद्यानों की स्थापना की गई है । इस प्रकार वानिकी कार्यों को बढ़ाने में अनुसंधान का विशेष योगदान है ।
प्रदेश में वानिकी के लक्ष्य एवं कार्य योजनाएँ
प्रदेश में वानिकी के विकास एवं प्रसार के लिए वन विभाग की स्थापन की गई है । इसके कार्य एवं लक्ष्य निम्नानुसार हैं -
( 1 ) सामाजिक वानिकी अपनाते हुए जन सहयोग से जन केन्द्रित प्रणाली के माध्यम से पारिस्थितिकी तन्त्र को संरक्षित करना तथा प्राकृतिक वनों की सुरक्षा , विकास एवं प्रबन्धन करते हए वक्षारोपण के माध्यम से वनावरण वृद्धि का प्रयास करना ।
( 2 ) पारिस्थितिकी संतुलन बनाये रखना तथा पर्यावरण संरक्षण एवं जैव विविधता का संरक्षण करना । साथ ही प्रदूषण के कुप्रभावों को उपयुक्त प्रजातियों के रोपण द्वारा कम करना ।
( 3 ) ग्रामीण क्षेत्रों में ईंधन , चारा तथा लघु प्रकाष्ठ की उपलब्धता में वृद्धि फार्म वानिकी एवं कृषि वानिकी के माध्यम से करना । साथ ही वनीकरण को जन आन्दोलन का रूप देना ।
( 4 ) वन प्रबन्ध के माध्यम से वानिकी कार्यों में जनता की सहभागिता सुनिश्चित करते हुए प्रदेश में वनों / वनाच्छादित क्षेत्रों में वृद्धि करना ।
( 5 ) पौधों की उन्नत किस्में विकसित करके तथा उन्नत बीजों के अधिकाधिक प्रयोग से वनों की उत्पादकता में वृद्धि करना एवं अभिरुचि के विषयों में प्रशिक्षित कर स्टाफ की कार्यकुशलता बढ़ाना ।
( 6 ) वन एवं वन्य जीव अपराधों पर प्रभावी नियंत्रण करना । वन्य भूमि एवं क्षेत्र की सुरक्षा करना । वन्य क्षेत्र में अवैध खनन पर रोक लगाना ।
उपरोक्त लक्ष्यों के सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश वन विभाग की महत्त्वपूर्ण योजनाएँ हैं -
( 1 ) कृषि वानिकी को बढ़ाना -
इस योजना का मुख्य उद्देश्य आरक्षित वनों से बाहर के क्षेत्रों में ग्रामीणों को उनके गाँवों के समीप ईंधन , चारा पत्ती अन्य गैर प्रकाष्ठ वन उपज व ग्रामीण एवं लघु काष्ठ उद्योग हेतु कच्चा माल सुलभ कराने हेतु उपयुक्त प्रजातियों का रोपण करना तथा जनता में वृक्षारोपण के प्रति अभिरुचि जाग्रत करना है ।
कृषि वानिकी के अन्तर्गत किसानों की निजी भूमि पर रोपण हेतु उच्च गुणवत्ता के पौधे तैयार कर उपलब्ध कराना तथा कृषकों को वृक्षारोपण से मिलने वाली अतिरिक्त आय , वैज्ञानिक भू — उपयोग , औषधीय पौधों के बीच में मिश्रित खेती के विभिन्न मॉडलों को तैयार कराकर किसानों को अवगत कराना एवं इनका प्रचार — प्रसार करना सुनिश्चित किया जा रहा है ।
( 2 ) औद्योगिक एवं पल्पवुड वृक्षारोपण -
इस योजना के अन्तर्गत काष्ठ आधारित उद्योगों जैसे — माचिस , प्लाईवुड , हार्डबोर्ड , पार्टिकल बोर्ड , पैकिंग केस , कत्था , फर्नीचर आदि की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयुक्त प्रजातियों को रोपण किया जाता है ।
( 3 ) क्षेत्रों में सामाजिक वानिकी -
यह योजना शहरी क्षेत्रों में सड़कों के किनारे खाली पड़ी भूमि , नाले एवं पार्को के समीप की भूमि में शोभाकर वृक्षों का रोपण कर उन्हें वृक्षों से आच्छादित करने एवं शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या के बढ़ते दबाव एवं औद्योगिक संस्थाओं से होने वाले वायु प्रदूषण को नियंत्रित कर घनी आबादी वाले शहरों के वातावरण को स्वच्छ एवं उनके सौन्दर्यवर्धन के उद्देश्य से चलायी जा रही है ।
इसके अतिरिक्त कन्द्रीय सहायता से चलाई जा रही योजनाएँ हैं -
( अ ) राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम -
वन विकास अभिकरण के माध्यम से प्रदेश के जनपदों में भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित राष्ट्रीय वनीकरण योजना के अन्तर्गत वानिकी कार्यों के साथ स्थानीय विकास , सुरक्षा एव सम्बन्धन कार्य में ग्रामवासियों की सहभागिता प्राप्त की जा रही है ।
( ब ) वन विभाग द्वारा वृक्षारोपण -
जनता के द्वारा इस योजना के अन्तर्गत प्रत्येक जिला मुख्यालय के शहरी क्षेत्रों में किसी नागरिक द्वारा प्रभागीय वनाधिकारी से लैण्ड लाइन , मोबाइल , एस०एम० एस० अथवा ई — मेल द्वारा अपन आवास , परिसर अथवा अन्य भूमि पर वृक्षारोपण करने का अनुरोध करने पर आवेदित स्थल पर निर्धारित शुल्क का भुगतान कर वन विभाग द्वारा वृक्षारोपण किया जाता है ।
रोपित किए जाने वाले प्रत्येक एक वर्षीय , दो वर्षीय , शोभाकार पौध एवं अतिविशिष्ट पौध हेतु क्रमश : 15 , 20 , 20 एवं 40 रूपये देय होंगे । रख — रखाव , सुरक्षा , सिंचाई आदि की व्यवस्था म्बन्धित नागरिक द्वारा की जायेगी ।
Originally published at https://www.agriculturestudyy.com.