कृन्तन या कटाई छंटाई ( Pruning in hindi )

Agriculture Studyy
4 min readJun 25, 2020

--

कृन्तन किसे कहते है, उद्देश्य, प्रकार, नियम एवं कृन्तन करने का समय व औजार ( What is Pruning, purpose, type, rules and time and tools of Pruning )

कृन्तन या कटाई छंटाई ( Pruning in hindi )

कृन्तन या कटाई छंटाई क्या है ( What is Pruning )

बहुत — से फल वाले पौधों में अगर कृन्तन या कटाई छंटाई ( Pruning in hindi )की क्रिया न की जाये तो वे जंगली पौधों की तरह बढ़ने लगते हैं तथा उन पर कोई भी फल पैदा नहीं होते ।

सभी फल वाले पौधों में काँट — छाँट की क्रिया आवश्यक नहीं होती ।

बहुत — से सदाबहारी मैदानी फल वाले पौधों ; जैसे — आम तथा चीकू में काट — छाँट की क्रिया में केवल मरी या सूखी हुई शाखाओं को काटा जाता है ।

इसी प्रकार से छोटे फल वाले पौधे ; जैसे — केला , अनन्नास तथा पपीता इत्यादि को अपनी प्राकृतिक । अवस्था में ही बढ़ने दिया जाता है ।

इसके दूसरी तरफ बहुत से पर्णपाती फल — वृक्ष ; जैसे — सेब , नाशपाती , आडू तथा अंगूर इत्यादि को नियमित रूप से काट — छाँट की आवश्यकता होती है ।

नींबू प्रजाति के फल , अनार तथा अमरूद में प्रारम्भिक काट — छाँट की क्रिया के अन्दर कुछ शाखाओं को अच्छी आकृति देने के उद्देश्य से काटा — छाँटा जाता है ।

कृन्तन या कटाई छंटाई की परिभाषा ( Definition of pruning )

कृन्तन के निम्नलिखित मुख्य उद्देश्य होते हैं -

( 2 ) फल — वृक्षों को अधिक मजबूत बनाना — जब फल -

वृक्षों को छोटी अवस्था से काटा — छाँटा जाता है तो उनके अधिक शक्तिशाली ढाँचे बनकर तैयार हो जाते हैं तथा वे तेज हवा . आँधी — तूफान इत्यादि में अधिक सुगमता से नहीं टूटते हैं ।

( 6 ) पौधों में छिड़काव एवं धूलिकरण ( Spraying and dusting ) को सुगमता प्रदान करना -

फल वृक्षों की कटाई — छंटाई द्वारा पौधों को छोटा बना दिया जाता है जिससे छिडकाव एवं धलिकरण कम समय एवं कम खर्च के साथ सुगमतापूर्वक किया जा फलों की तुड़ाई में सुगमता प्रदान करना

( 7 ) फलों की तुडाई मै सुगमता प्रदान करना —
कृन्तन की क्रिया द्वारा पौधों का घनापन दूर हो जाता है, फल पक्षों की कटाई — छंटाई ( कन्तन ) हो जाता है तथा उनकी ऊंचाई भी कम हो जाती है , जिससे फलों की तलाई मुगमतापूर्वक कम समय तथा का खर्च के साथ की जा सकती है

कृन्तन या कटाई छंटाई करने के नियम ( Rules of Pruning )

1 . सर्वप्रथम पौधे से मरी या सूखी हुई , रोगग्रसित एवं कमजोर शाखाओं को काटकर अलग कर देना चाहिये ।

2 . पौधों की घिनकी आर — पार जाने वाली तथा एक — दूसरे पर चढ़ी हुई शाखाओं को काटकर पौधों को खुला बना देना चाहिये ।

3 . जो शाखायें जमीन के बहुत सम्पर्क में हों , काट देनी चाहिये ।

4 . शेष बची हुई शाखाओं को या उनके कुछ हिस्सों को इस प्रकार काटना चाहिये कि कटान साफ एवं सीधे हों तथा शाखा के पर की कलिका बाहर की तरफ रहे । तत्पश्चात् कटे हुए भागों को पेन्ट कर देना चाहिये ।

5 . अगर पौधों में कार्बोहाइड्रेट की कमी से फलत कम होती है तो जड़ों का कृन्तन कुछ मात्रा में कर देना चाहिये ।

कृन्तन या कटाई छंटाई के प्रकार ( Types of Pruning )

पौधों में कृन्तन निम्न प्रकार किया जाता है -

1 . पौधों की शाखाओं का कृन्तन करना ( Pruning of branches )

2 . जड़ों का कृन्तन करना ( Root pruning )

3 . कृन्तन की अन्य विधियां — तना , पत्ती , फूल एवं फल कृन्तन ।

पौधों की शाखाओं का कृन्तन करना ( Pruning of Branches )

पौधे की अवांछित शाखाओं या प्ररोहों को जब पूर्णरूप से बिना कोई अवशेष या दूंठ जड़ते हुए काट दिया जाता है , तो इस क्रिया को ‘ थिनिंग ‘ कहा जाता है ।

“ इस क्रिया को करने से पौधे की शक्ति को एक शाखा से सरी शाखा में पहुंचाया जा सकता है उद्यानिकी के मूल तत्व सकता है ।”

अगर एक ही मुख्य शाखा पर बहत — सी छोटी शाखायें बढ़ रही हों और उनमें से कुछ शाखाओं को काटकर अलग कर दिया जाये तो शेष शाखायें अधिक शक्तिशाली हो जाती हैं ।

इस विधि से पौधों की वृद्धि भी अच्छी होती है तथा फलत भी होती है।

जब पौधे की सभी शाखाओं के अग्रम या ऊपरी हिस्से काट दिये जाते हैं तथा नीचे का हिस्सा जुड़ा छोड़ दिया जाता है तो इस क्रिया को ‘ हैडिंग बैक ‘ कहा जाता है ।

“ इस क्रिया का मुख्य उद्देश्य पौधे की शक्ति को शाखा के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में पहुँचाना होता है ।

जब शाखा का ऊपरी भाग काट दिया जाता है तो कटे हुए भाग के नीचे से बहुत — सी शाखायें पैदा होती हैं जो फलों की अच्छी मात्रा उत्पन्न करती हैं ।

इस विधि द्वारा पौधे । की किसी शाखा पर आवश्यकतानुसार शाखायें प्राप्त की जा सकती हैं । शाखाओं के ऊपरी भाग कट जाने से पौधे की ऊँचाई कम हो जाती है ।

कृन्तन की यह विधि उन फल वाले पौधों में करनी उपयुक्त समझी जाती है जिनमें फल पैदा करने वाले हिस्से पार्श्व रूप से ( Laterally ) एक वर्ष पुरानी शाखाओं के निचले भागों में पैदा होते हैं ।

दूसरी तरफ यह विधि उन पौधों के लिये हानिकारक होगी जिन पर फल शाखाओं के अग्र भाग पर पैदा होते हैं ।

...आगे पढ़ें

Originally published at https://www.agriculturestudyy.com.

--

--

Agriculture Studyy
Agriculture Studyy

Written by Agriculture Studyy

Agriculture Studyy - Agriculture Ki Puri Jankari Hindi Mein https://www.agriculturestudyy.com

No responses yet