कृषि विपणन ( Agriculture Marketing )

Agriculture Studyy
5 min readJun 16, 2020

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कृषि विपणन किसे कहते है इसके कार्य, उद्देश्य एवं महत्व व क्षेत्र ( What is agricultural marketing, its functions, purpose and importance and area )

कृषि विपणन (Agriculture Marketing in Hindi)

कृषि विपणन का अर्थ ( Agriculture Marketing meaning in hindi )

सामान्यतया कृषि विपणन शब्द से तात्पर्य उन समस्त विपणन कार्यों तथा सेवाओं से है जिनके द्वारा कृषि वस्तुयें उत्पादक से अन्तिम उपभोक्ता तक पहुँचती हैं ।

चूँकि उत्पादन का अन्तिम उद्देश्य उपभोग है , अत : यह विपणन उत्पादन का एक अभिन्न अंग या अनिवार्य प्रक्रिया है ।

इसमें एकत्रीकरण , परिवहन , भंडारण , श्रेणीकरण , विधायन , जोखिम व वित्त व्यवस्था , विज्ञापन — प्रचार , क्रय तथा विक्रय आदि विभिन्न कार्य किये जाते हैं ।

विभिन्न अर्थविदों के द्वारा कृषि विपणन की जो व्याख्या की गई है उसमें प्रमुख निम्नलिखित हैं -

कृषि विपणन की परिभाषा ( Definition of agricultural marketing in hindi )

अतः सामान्य शब्दों में यह कहा जा सकता है कि कृषि विपणन से तात्पर्य कृषि सम्बन्धी व्यावसायिक क्रियाओं के निष्पादन से है जो उत्पादक से उपभोक्ता या प्रयोगकर्ता तक कृषि उत्पादों और सेवाओं के संचालन को सृजित तथा नियन्त्रित करती हैं ।

निष्कर्ष ( Conclusion ) उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर विपणन के सम्बन्ध में निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं -

( 1 ) विपणन में मात्र क्रय एवं विक्रय की क्रियायें नहीं आती अपितु वस्तु के उत्पादन या निर्माण से लेकर उसे उपभोक्ता तक पहुँचाने की क्रियायें भी इसमें सम्मिलतित होती हैं ।

ये क्रियायें भौतिक ( शारीरिक ) , मानसिक एवं सेवा सम्बन्धी हो सकती हैं ।

( 2 ) विपणन क्रियायें परस्पर जुड़ी होती हैं । एक क्रिया करने के बाद उससे जुड़ी दूसरी तथा अन्य क्रियायें भी स्वाभाविक तौर पर करनी पड़ती हैं ।

( 3 ) विपणन कोई एक क्रिया नहीं बल्कि अनेक व्यापारिक क्रियाओं का संयोग है , अर्थात् विपणन व्यापारिक क्रियाओं रूपी कड़ियों की एक लड़ी ( श्रृंखला ) है ।

( 4 ) विपणन मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये किया जाता है ।

( 5 ) विपणन उत्पादक क्रिया है ।

( 6 ) विपणन से स्थान , समय तथा स्वामित्व उपयोगितायें उत्पन्न होती हैं ।

( 7 ) विपणन एक सुसंगठित व्यावसायिक क्रिया है ।

( 8 ) उत्पादन उपभोक्ताओं की इच्छाओं और आवश्यकताओं के अनुसार किया जाता है ।

( 9 ) जब किसी उत्पादन का विचार उत्पन्न होता है विपणन प्रकिया उसी समय प्रारम्भ हो जाती है और विक्रय कुछ समय के अन्तराल ( बाद ) तक ( विपणन प्रक्रिया ) चलता रहता है ।

विपणन विधि में उपयोगितायें ( Utilities in Marketing Process )

विपणन एक उत्पादक क्रिया है । ‘ उत्पादन से अभिप्राय किसी उत्पाद के रूप में परिवर्तन करके उसे उपभोग योग्य बनाने , उपभोग के लिये सही समय और उचित स्थान पर उपलब्ध कराने अथवा उन जरूरतमन्द व्यक्तियों के स्वामित्व में स्थानान्तरित करने से है जो उसका उपभोग कर सकते हैं ।

आपने तो वस्तुओं में उपयोगिता उत्पन्न करने की विधि को उत्पादन बताया है । कृषि उत्पादों की विपणन — विधि में निम्नांकित चार प्रकार की उपयोगितायें उत्पन्न होती हैं ।

( 1 ) स्थान उपयोगिता ( Place Utility ) -

कृषि उत्पादों की पूर्ति — बहुल ( Surplus ) स्थानों से अभावग्रस्त ( deficit ) स्थानों पर स्थानान्तरित करने पर उत्पादों में स्थान उपयोगिता उत्पन्न होती है । अभावग्रस्त क्षेत्र में पूर्ति की गई वस्तु की उपयोगिता बढ़ जाती है ।

विभिन्न परिवहन के साधन वस्तुओं में स्थान उपयोगिता उत्पन्न करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं । परिवहन साधन वस्तुओं को देश में प्रत्येक स्थान पर पहुँचाकर स्थान उपयोगिता उत्पन्न करते हैं ।

अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भी कृषि उत्पाद पहुँचाये जाते हैं । इस प्रकार उत्पादन केन्द्र से अन्तिम उपभोक्ता के बीच अनेक बार परिवहन साधनों के द्वारा स्थान परिवर्तन होता रहता है ।

उसी क्रम में स्थान — उपयोगितायें उत्पन्न होती हैं और बढ़ती जाती हैं ।

( 2 ) समय उपयोगिता ( Time Utility ) -

फसल कटने के बाद वस्तु के विक्रय में जितना ही अधिक समय लगता है उत्पन्न समय — उपयोगिता तदनसार बढती जाती है । उत्पादन मौसम में पर्ति का बाहल्य ( Glut ) होने से उपयोगिता कम रहती है ।

लेकिन बाद में आगे चलकर दूसरे मौसम में उपयोगिता बढ़ जाती हैं । समय उपयोगिता उत्पन्न करने की प्रमुख विधि है — वस्तुओं का संग्रहण और भण्डारण , जो विपणन प्रक्रिया का एक आवश्यक कार्य है ।

जैसे आलू का मौसम बीत जाने पर संग्रहालयों में सुरक्षित रखकर आलू में समय उपयोगिता उत्पन्न की जाती है ।

( 3 ) रूप उपयोगिता ( Structure of From Utility ) -

वस्तुओं के रूप उपयोगिता उत्पन्न करती हैं विभिन्न एजेन्सियाँ या संस्थायें । संसाधन क्रिया द्वारा रूप में उपयोगिता उत्पन्न होने से उपभोक्ता वस्तुयें अधिक उपयोग्य बन जाती हैं ।

फलस्वरूप उनका शीघ्रता में उपयोग किया जा सकता है । विधायनकर्ता या संसाधनकर्ता जिन उत्पादों में रूप उपयोगितायें उत्पन्न करते हैं वे हैं -

गेहूं से आटा और मैदा , धान से चावल , दलहन से दाल , तिलहन से तेल , पटसन से रस्सी और बोरियाँ , कपास से धागे या सूत और वस्त्र , दूध से चाय , मक्खन , मिठाई , घी और दही तथा गन्ने से रस , खांडारी और चीनी आदि का निर्माण करना ।

( 4 ) स्वामित्व या अधिकार उपयोगिता ( Ownership Utility ) -

कृषक — उत्पादक के उत्पाद का अन्तिम स्वामी होता है अन्तिम उपभोक्ता । किन्तु इन दोनों के बीच में अनेक विपणन — मध्यस्थ एवं कार्यकारी भी वस्तुओं में उत्पन्न होने वाली स्वामित्व उपयोगिता प्राप्त करते हैं ।

जिस व्यक्ति के पास उपलब्ध वस्तु अधिक मात्रा में है उस व्यकति से ( अधिक ) जरूरतमन्द व्यक्ति के पास वस्तु के स्वामित्व के स्थानान्तरित हो जाने पर स्वामित्व उपयोगिता बढ़ जाती है । स्वामित्व उपयोगिता कृषि उत्पादों की क्रिय — विक्रय द्वारा उत्पन्न होती है । माटों की स्वामित्व — उपयोगिता अलग — अलग व्यक्तियों के लिये अलग — अलग होती है ।

उत्तर इन तथ्यों के महत्व को स्वीकार करते हुये , मूर जोहल एवं खुसरो , मैकलीन तथा कनवर्ज , ह्यगे एवं मिचेल ने विपणन को उत्पादक क्रिया बताया है ।

विपणन विधि इन चार प्रकार की उपयोगिताओं के कारण उत्पाद का विपणनत्व ( Marketability ) बढ़ जाता है और बाजार का विकास होता है ।

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