खरपतवार एवं उनका नियंत्रण

Agriculture Studyy
7 min readApr 30, 2020

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खरपतवार किसे कहते है एवं उनका नियन्त्रण कैसे करते हैं ( What are weeds called and how do we control them )

खरपतवार किसे कहते है ( What is weed called )

आदिकाल से पौधे मनुष्य को प्रकृति द्वारा प्रदत बहुमूल्य धरोहर है ।

सम्पूर्ण विश्व में तीन लाख से अधिक पौधों की जातियाँ हैं । इनमें से लगभग तीन हजार जातियां मनुष्य जति के लिये आर्थिक रूप से लाभकारी है आर्थिक महत्व वाले पौधे की जातियों के साथ - साथ कुछ अन्य पौधे भी उगकर प्रतिस्पर्धा करते हैं ।

ये अवांछित अनावश्यक होते हैं जो मनुष्य एवं पशुओं के लिये हानिकारक होते हुए मनुष्य की गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं ।

ऐसे पौधों का उगना निश्चित रूप से चिंता का विषय है । कृषिकृत एवं अकृषिकृत क्षेत्रों में खपतवारों का उगना एक गम्भीर समस्या है ।

सघन खेती में उर्वरक , सिंचाई और बहुफसली खेती आदि के प्रयोग से खरपतवारों की समस्या और बढ़ी है ।

क्षेत्रों में भी खरपतवार विभिन्न स्थानों जैसे जलीय वातावरण , वनों , रेलवे लाइनों सड़क मार्गों हवाई अड्डों , औद्योगिक स्थनों एवं सौन्दर्यता के स्थानॊ में उगते हुये पाए जाते हैं ।

खरपतवार की परिभाषा ( Definition of weed )

ऐसा पौधा जो अवांछित स्थानों पर बिना बोए स्वयं ही उग जाता है और उस फसल को विभिन्न रूपों में क्षति पहुँचाकर उपज की हानि करता है , खरपतवार ( weed ) कहलाता है ।

जैसे - गेहूं की फसल में उगने वाला जंगली जई का पौधा ।

" एक ऐसा पौधा जिसकी हानि करने की क्षमता उसकी लाथ करने की क्षमता से अधिक होती है , खरपतवार कहलाता है । "

"एक ऐसा पौधा जिसे उस स्थान पर नहीं उगना चाहिये उग जाता है खरपतवार कहा जाता है । "

खरपतवार क्या है ( What is Weed )

खरपतवार एक ऐसा अवांछित पौधा है जो बिना बोए ही खेतों तथा अन्य स्थानों पर कर तेजी से बढ़ता है और अपने समीप के पौधों की वृद्धि को दबाकर उपज को घटा देता है जिससे फसलों की गुणवत्ता गिर जाती है ।

खरपतवार का दबाकर उपज क्षमता ( Yield) खरपतवार अवांछित पौधे हैं लेकिन सभी अवांछित पधि खरपतवार नहीं होते है ।

एक महत्वपूर्ण तथ्य है । ऐसे पौधे जो खरपतवार के रूप में जाने जाते हैं मनुष्य की क्रिया - कलापों का प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं ।

खरपतवार एक फसलयुक्त खेत , सड़क के किराने , बांग बगीचे तथा पार्क इत्यादि में कभी भी उगते हुये पाये जाते हैं ।

खरपतवारों के उदाहरण ( Example of weeds )

बथुआ ( Chinopodium album ) कृष्णनील ( Anagallis arvensis ) कनकुआ ( Commelina henghalensis )

मौथा ( Cyperus rotundus ) हिनखुरी ( Convolvulus arvensis ) , दूबवास ( Cyuodon dactylon )

खरीफ की फसलों के खरपतवार धान - मोथा , जंगली धान , सांवा , कौंदो , भंगछा , कनकुआ ।

मक्का - हजारदाना , मौथा , गुम्मा , बरू , दूब चौलाई ।

सोयाबीन , मूग , अरहर , मूंगफली हजारदाना , चौलाई , दूब , मौथा गुम्मा , हुलहुल ।

रबी की फसलों के खरफ्तवार चना , मटर , आलू , सरसो - चटरी - मटरी , गेगला , कृष्णनील , कंटीली , प्याजी , दूब , मौथा , बथुआ ।

गेहूँ चटरी - मटरी मुनमुना मौथा , सैंजी , हिरनखुरी , कृष्णनील दूब , बथुआ ।

बरसीम कृष्णनील , कंटीली , दूब , मौथा व कासनी ।

खरपतवारों की मुख्य विशेषताएँ ( Main Characteristics of Weeds )

( 1 ) कुछ खरपतवारों की बीज उत्पादन क्षमता बहुत अधिक होती है ।

जैसे - बथुआ का एक पौधा एक वर्ष में लगभग 70 , 0XN ) बीज पैदा करता है ।

( 2 ) खरपतवारों के बीजों का अंकुरण शीघ्र एवं तेजी से होता है ।

खरपतवारों के बीजों के अंकुरण वे वृद्धि को तापमान प्रोत्साहित करता है ।

रबी की फसलों एवं उसमें पाये जाने वाले खरपतवारों के लिये 5० - 22°C व खरीफ 22°C व खरीफ के खरपतवारों के लिये 19°C - 30°C तापमान उपयुक्त होता है ।

( 3 ) कुछ खरपतवारों की बड़े लम्बी और विकसित हो जाती है ।

कांस व हिरनखरी खरपतवारों की जड़े भूमि में 7 मीटर तक की गहराई तक पहुँच जाती है ।

( 4 ) कुछ खरपतवार फसल के पौधों के समान होते हैं अतः खरपतवार और फसल के पौधों को पहचानना कठिन हो जाता है । जैसे गेहूं की फसल में जंगली जई का पौधा ।

( 5 ) खरपतवार का पौधा किसी भी फसल के पौधों के साथ स्थान , प्रकाश , वायु , पोषक 9 \ कुछ खरपतवार आता है ।

जैसे पौधों के साथ स्म करता के पौधों के तत्व मृदा नमी व 0 , के लिये प्रतिस्पर्धा करता है ।

( 6 ) कुछ खरपतवारों के बीजों का आकार एवं रंग फसल के पौधे के बीजों के होते हैं जिससे अन्तर करना सरल नहीं होता ।

( 7 ) स्वभाव से कठोर होते हैं व प्रतिकूल परिस्थितियों में उगने की क्षमता रखते हैंं।

( 8 ) खरपतवार के पौधे पर कीटों व बीमारियों का प्रभाव कम होता है ।

( 9 ) कुछ खरपतवार दुर्गन्धयुक्त एवं विषैले होते हैं जैसे धतूरा व हुलहुल ।

( 10 ) कुछ खरपतवारों के बीजों पर पंख , बाल व कांटे होते हैं जो इनके बीजों के प्रसारण में सहायक होते हैं ।

उदहारण - आक , सत्यानाशी व गेहूंसा आदि ।

फसल के पौधों व खरपतवारों में सौर - ऊर्जा , वायु , स्थान , समय , मृदा नमी , पोषक तत्व व ऑक्सीजन के लिये संघर्ष होता है ।

किन्हीं दो पौधों में जब तक संघर्ष नहीं होता जब तक कि उनकी आवश्यकता से अधिक पोषक तत्व , जल और सौर ऊर्जा की उपलब्धता बनी हुई हैं ।

किसी भी एक कारक के आवश्यकता से कम होने पर संघर्ष शुरू हो जाता है ।

इस प्रकार यदि भूमि में पोषक तत्वों व जल की अधिकता है तो पौधों की वृद्धि प्रकाश पर निर्भर करती है ।

जल व प्रकाश की अधिकता में व पोषक तत्वों की कमी होने पर खरपतवार व फसल के पौधों में पोषक तत्वों की पूर्ति हेतू संघर्ष शुरू हो जाता है ।

इस प्रकार खरपतवार का फसल के पोधे के साथ सौर - ऊजी , वायु , पोषक तत्व स्थान व मृदा नमी आदि के लिये संघर्ष करना फसल खरपतवार प्रतियोगिता ( Crop - weed competition ) कहलाता है ।

फसल खरपतवार प्रतियोगिता को बहुत से कारक प्रभावित करते हैं जिनमें मृदा - नमी . पोषक तत्व , सौर ऊर्जा , स्थान , समय व ऑक्सीजन की पूर्ति प्रमुख हैं ।

इन कारकों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है |

1 . पोषक तत्व ( Nutrients ) -

फसल खरपतवार प्रतियोगिता में पोषक तत्वों के लिये संघर्ष अति महत्वपूर्ण है ।

पौधों की वृद्धि में आवश्यक पोषक तत्व के लिये खरपतवार फसल के पौधों के साथ स्पर्धा करते हैं ।

किसी भी तत्व की कमी की अवस्था में फसलों व खरपतवारों के बैचि उस तत्व को ग्रहण करने के लिये प्रतियोगिता प्रारम्भ हो जाती है जिससे फसल की वृद्धि एवं उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।

एक आंकलन के अनुसार खरपतवार भूमि से फसलों की वृद्धि के लिये आवश्यक पोषक तत्वों जैसे - नाइट्रोजन - 47 % , फॉस्फोरस 42 % पोटेशियम 55 % कैल्शियम 39 % और मैग्नीशियम 24 ग्रहण करते हैं ।

चौलाई खरपतवार की जातियां प्रायः अपने शुष्क पदार्थ में 30 % से अधिक नाइट्रोजन संचित करती है ।

बथुआ और कुल्फा खरपतवारों के शुष्क पदार्थ में 13 % पौटेशियम पाया जाता है ।

खरपतवारों को शुष्क पदार्थ की उत्पादन 1 - 10 टन / हैक्टेयर तक होता है । टिशियम 55 % कैल्शियमवश्यक पोषक तत्वों जैसे आकलन के अनुसार खरपतवार

2. मृदा नमी ( Soil moisture ) -

3 . सौर - ऊर्जा ( Solar - energy ) -

फसलों को खरपतवार रहित रखने के लिये खरपतवारनाशियों का प्रयोग की क्रान्तिक अवस्थाएँ ( Critical periods of use of herbicides in crops to make them free । from weeds ) -

फसलों को खरपतवार रहित बनाने के लिये खरपतवार नाशियों को उनकी क्रान्तिक अवस्था ( Critical stane ) पर प्रयोग करना अति महत्वपूर्ण है ।

ऐसी स्थिति में खरपतवारों को उनकी प्रारम्भिक वद्धि से ही नियन्त्रण करने में सहायता मिलती है ।

विभिन्न खरपतवार नाशियों के विभिन्न फसलों में प्रयोग का समय भी अलग - अलग होता है ।

खरपतवारों की क्रांतिक अवस्था में रसायनों का प्रयोग कर इन पर आसानी से नियन्त्रण किया जा सकता है ।

खेतों में खरपतवारनाशियों का प्रयोग निम्न क्रांतिक अवस्थाओं पर किया जाता है -

( i ) फसलों की बुवाई से पूर्व ( Pre - sowing application ) -

खेत में किसी फसल की बुवाई से पूर्व ही खरपतवारनाशियों का प्रयोग करना चाहिये ।

ऐसा करने से बोई गई फसल के अंकुरण से पर्व खरपतवारों के निर्गमन , अंकुरण व उनके स्थापन में क्षीणता आ जाती है । और फसल में सफलता पूर्वक खरपतवार को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है ।

( ii ) निर्गमन से पूर्व ( Pre - emergence ) -

इस समय पर खरपतवार नाशियों का प्रयोग फसल को बुवाई के बाद बीजाकुरों के निपमन और अंकुरण से पूर्व किया जाता है ।

खेत में यह स्थिति फसल , खरपतवार और फसल व खरपतवार के निर्गमन से पूर्व होती है ।

( iii ) निर्गमन के पश्चात् ( Post emergence ) -

खेत में उगाई गई फसल व खरपतवार दोनों के निर्गमन एवं अंकुरण के पश्चात् खरपतवारनाशी का प्रयोग क्रांतिक अवस्था पर किया जाता है ।

खरपतवारो को नियन्त्रण करने की विधियाँ ( Methods of controlling weeds )

खरपतवार नियन्त्रण के लिये विभिन्न विधियों अपनाई जाती है ।

खरपतवार नियन्त्रण की विधियाँ सस्य वैज्ञानिक विधियाँ

2 . सस्य वैज्ञानिक विधियाँ

इनको यान्त्रिक विधियाँ भी कहते हैं । खरपतवार नियन्त्रण की ये विधियाँ प्राचीनकाल से प्रचलित हैं ।

वर्तमान समय में इन विधियों का प्रयोग पौधशाला , लॉन ( Lawn ) तथा फूलों की क्यारियों में खरपतवार नियन्त्रण हेतु किया जाता है ।

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