परिपक्वं बीजाण्ड की संरचना ( Structure of Mature Ovule )
परिपक्वं बीजाण्ड की संरचना एवं बीजाण्ड के प्रकार ( Structure of Mature Ovule and types of Ovule )
परिपक्वं बीजाण्ड की संरचना ( Structure of Mature Ovule )
एक प्रारूपिक , आवृतबीजी बीजाण्ड ( angiosperimic ovule ) की आन्तरिक संरचना उसके मध्य आयाम — ( median longitudinal section ) में भली — भांति समझी जा सकती हैं ।
निषेचन के लिए तैयार अर्थात् पूर्ण परिपक्व बीजाप लगभग गोल या अण्डाकार संरचन प्रत्येक बीजाण्ड ( ovule ) एक छोटे से वृन्त के द्वारा बीजाण्डासन ( placenta ) से जुड़ा रहता है ।
वृन्त को बीजाण्डवृन्त ( funicle ) तथा जिस स्थान पर प्रतिध्रुवीय बीजाण्डवृन्त बीजाण्ड के साथ जुड़ता है उसे नाभिका । कोशिकाये । या हाइलम कहते हैं ।
बीजाण्ड की प्रमुख संरचना एक हाइलम् — मृदूतकीय ( parenchymatous ) पोषक ऊतक ( nutritive tissue ) से होती है ,
इसे बीजाण्डकाय ( nucellus ) कहा अण्डकोशिका जाता है ।
इस पर दो आवरण होते हैं , जिन्हें बाह्य तथा सहायक — अन्तः अध्यावरण ( outer and inner integuinents ) कोशिकाये — बाह्या , अध्यात्ररण कहते हैं ।
ऐसे बीजाण्ड दो आवरण होने के कारण । बीजाण्डवृन्त बाइटेगमिक ( bitegmic or bitegiminal ) कहलाते हैं ।
बीजाण्डद्वार कभी — कभी बीजाण्ड पर केवल एक ही आवरण होता है । — बीजाण्डासन तब इसे यूनीटेगमिक ( unitegmic or unitegiminal )
एक परिपक्व प्रारूपिक बीजाण्ड की मध्य आयाम काट कहा जाता है ।
इसके अतिरिक्त कुछ पौधों में तीसरा ( median longiludinal section ) आवरण एरिल ( aril ) के रूप में बन जाता है । दोनों आवरणों में एक स्थान पर एक छिद्र बीजाण्डद्वार ( Ticropyle ) होता है
बीजाण्डकाय के साथ जहाँ आवरण जुड़े रहते हैं , इस स्थान को निभाग या चैलाजा ( chalaza ) कहा जाता हैं । बीजाण्ड अपने लिए भोज्य पदार्थ बीजाण्डासन से ही प्राप्त करता है ।
बीजाण्डकाय के अन्दर परिपक्व अवस्था में एक थैले जैसी संरचना होती है जिसे भ्रणकोष ( embryo sae ) कहते हैं . यह मादा यमकोदभिद ( female gametop गुरुबीजाणु ( megaspore ) से निर्मित होता है ।
भ्रूणकोष में , बीजाण्डद्वार की ओर वाले सिरे पर तीन कोशिकाये होती हैं । तीनो कोशिकाओं के इस समूह को अण्ड उपकरण ( egg apparatus ) कहा जाता है ।
इनमें से एक कोशिका जो प्रायः मध्य में स्थित बड़ी तथा स्पष्ट होती हैं , अण्डाणु या अण्डकोशिका ( oosphere or egg cell ) है । शेष दोनों कोशिकाये . सहायक कोशिकायें ( synergids or helping cells ) कहलाती है ।
भ्रूणकोष में विपरीत सिरे पर भी अन्य तीन कोशिकाये होती हैं । ये प्रतिध्रुवीय कोशिकायें ( antipodal cells ) कहलाती हैं । भूणकोष के केन्द्र में दो केन्द्रक अर्द्धसंयुक्त अवस्था में , जीवद्रव्य में फंसे हुये तथा कोशिकाद्रव्यी सूत्रों ( cytoplasmic strands ) के द्वारा लटके रहते हैं ।
इन केन्द्रको को अलग — अलग ध्रुवीय केन्द्रक ( pollar nuclei ) और सम्मिलित रूप में द्वितीयक केन्द्रक ( Secondary nucleus ) कहते है ।
भुणकोष के अन्दर कोई भी कोशिका भित्तियुक्त नहीं होती ।
बीजाण्ड के प्रकार ( Types of Ovule )
बीजाण्ड के विभिन्न भागों की स्थिति तथा बीजाण्डासन पर उसके झुकाव के आधार पर बीजाण्ड निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं -
इस प्रकार का बीजाण्ड सीधा होता है । इसके बीजाण्डवृन्त , वीजाण्डद्वार तथा भ्रूणकोष एक ही सीधी रेखा में होते हैं ;
जैसे — पान , काली मिर्च , नरी या पॉलीगोनम ( Polygonuni ) , जंगली पालक ( Rutex ) आदि में इसी प्रकार के बीजाण्ड मिलते हैं ।
बीजाण्डवृन्त की अधिक वृद्धि के कारण इस प्रकार के बीजाण्ड में बीजाण्डद्वार बीजाण्डासन के समीप आ जाता है । इस प्रकार के बीजाण्ड में बीजाण्डवृन्त अध्यावरण के साथ दूरी तक जुड़कर रेफी ( raphe ) का निर्माण करता है । सामान्यतः पौधों में इसी प्रकार के बीजाण्ड मिलते हैं ,
जैसे — चना ( Cicer acrituani ) , मटर , सेम , अरण्डी ( castor ) , गुलमेंहदी आदि ।
इस प्रकार का बीजाण्ड लगभग अनुप्रस्थ होता है तथा इसका बीजाण्डद्वार बीजाण्डवृन्त के समीप भी आ जाता है । ऑट्रॉपस तथा एनाट्रॉपस के मध्य की अवस्था हैं ;
जैसे — रैननकलस ( Rununcultus )
यह बीजाण्ड लगभग अनुप्रस्थ ही होता है किन्तु यहाँ बीजाण्डकाय तथा भ्रूणकोष दोनों ही वक्र होते हैं । बीजाण्डद्वार भी बीजाण्डवृन्त के समीप होता है अतः बीजाण्डद्वार एवं निभाग ( chalaza ) वाला अक्ष भी वक्र होता है ;
जैसे — करील ( Capparis ) , वॉल फ्लोवर ( wall flower ) तथा कैरियाफिलेसी ( caryophyllaceae ) , ( leguminosae ) आदि कुलों के पौधों में मिलते हैं ।
ये बीजाण्ड अनुप्रस्थ होते हैं । बीजाण्डकाय , बीजाण्डद्वार तथा निभाग में होकर खीची जाने वाली रेखा सीधी होती है तथा यह बीजाण्डवृन्त के साथ समकोण पर स्थित होती है ।
जैसे — लेम्ना ( Lenna ) , पोस्त ( poppy ) , प्रिम रोज ( Printula ) , गुलाबाँस ( Mirabilis ) तथा सोलैनेसी ( solanaceae ) कुल में पाये जाते हैं ।
जब बीजाण्ड एक बार उल्टा होने के बाद घुमकर फिर सीधा हो जाता है । इस प्रकार , बीजाण्डवृन्त अत्यन्त घुमावदार होता है । बीजाण्डद्वार फिर से बीजाण्डासन से दूरस्थ स्थित हो जाता है ;
जैसे — नागफनी ( opuntia ) आदि में
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