प्रभावकारी वर्षा एवं इसे प्रभावित करने वाले कारक
प्रभावकारी वर्षा एवं इसे प्रभावित करने वाले कारक ( Effective rainfall and factors affecting it )
प्रभावकारी वर्षा , वाष्पोत्सर्जन एवं जल का उपभोग्य ( क्षयकारी ) प्रयोग
वर्षा के पानी का वह भाग जो पौधों के लिये उपयोग में आता है अथवा पौधों के द्वारा उपभोग किया जाता है , उसे प्रभावकारी वर्षा ( Effective Rainfall ) कहते हैं ।
वर्षा जल के शेष भाग में कुछ भूमि द्वारा शोषित कर लिया जाता है , कुछ भाग रिसकर मृदा में पौधों के जड़ क्षेत्र से नीचे चला जाता है , कुछ भाग अपवाह द्वारा बहकर अन्य जगह पर चला जाता है , जो पौधों के लिये उपयोगी नहीं रह पाता ।
आधिक तीव्र वर्षा का अल्प भाग ही पौधों की जड़ों को पहँचता है ।
जब वर्षा की गति धीमी होती है , तब ऐसी स्थिति भी आती है कि वर्षा का सम्पूर्ण जल भूमि ग्रहण कर लेती है ।
अतः मन्द गति की वर्षा शत — प्रतिशत प्रभावकारी वर्षा ( Effective Rainfall ) कहलाती है ।
प्रभावकारी वर्षा को प्रभावित करने वाले तत्व ( Factors affecting Effective Rainfall ) -
( 1 ) वर्षा का स्वरूप ( Nature of Rainfall ) -
वर्षा की तीव्रता एवं अधिक मात्रा से इसका प्रभावीपन कम होता है ।
अधिक वेग से पड़ी बूंदें रन्ध्रावकाश बन्द करके अपवाह को बढ़ाती हैं ।
इस प्रकार से वर्षा के स्वरूप का प्रभावकारी वर्षा पर प्रभाव पड़ता है ।
( 2 ) मृदा का स्वरूप ( Soil Characteristics ) -
भूमि की जल शोषण क्षमता मृदा विन्यास , मृदा में जीवाँश पदार्थों की मात्रा पर निर्भर होती है । मृदा जलधारण क्षमता में वृद्धि होने पर वर्षा प्रभावकारी होती है ।
( 3 ) स्थलाकृति ( Topography ) -
समतल भूमियों को ढालू भूमियों की अपेक्षा वर्षा का पानी सोखने के लिये अधिक समय मिलता है ।
वर्षा का पानी पड़ने एवं इसे सोखने के मध्य समय को अवसर समय कहते हैं , जो समतल भूमियों को अधिक मिलता है ।
( 4 ) मृदा एवं जल संरक्षण सम्बन्धी क्रियायें -
जिन भूमियों में अपवाह को रोकने हेतु जल संरक्षण सम्बन्धी क्रियायें की जाती हैं , वहाँ पर वर्षा प्रभावकारी सिद्ध होती है ।
विभिन्न फसलों के लक्षण वर्षा प्रभावकारिता को प्रभावित करते सिंचाई एवं जल प्रबन्ध हैं ।
भूजल आच्छादन की मात्रा , जड़ों की गहराई , पौधे की वृद्धि अवस्था , जल ग्रहण की दर का प्रभाव वर्षा की प्रभावकारिता पर देखने को मिलता है ।
प्रभावकारी वर्षा का निर्धारण ( Determination of Effective Rainfall ) -
यद्यपि अभी तक प्रभावशाली वर्षा के आंकलन हेतु कोई सर्वमान्य विधि विकसित नहीं हो सकी है । विभिन्न देशों में इसके निर्धारण के लिये विभिन्न विधियाँ प्रचलित हैं ।
भारत में शुष्क एवं अर्द्ध — शुष्क क्षेत्रों के लिये मौसमी वर्षा का 70 प्रतिशत एवं आई क्षेत्रों के लिये 50 प्रतिशत प्रभावकारी होने का अनुमान लगाया गया है ।
प्रभावकारी वर्षा का निर्धारण करने वाली विधियाँ -
प्रभावकारी वर्षा निर्धारण हेतु कुछ विधियाँ निम्न प्रकार हैं -
( i ) स्थितिज वाष्पोत्सर्जन अनुपात विधि ( Potential evapo — transpiration ratio method ) -
यह विधि भारत की कुछ परियोजनाओं में प्रभावकारी वर्षा के निर्धारण हेतु प्रयोग की जाती है ।
भूमि की किस्म , मृदा नमी का स्तर , मौसम या वाष्पोत्सर्जन ( ET ) के आधार पर फसल को वृद्धिकाल के कुछ दिनों के समूह के लिये / संयुक्त राज्य जल परिषद् ( USWB ) एक वर्ग के पैन वाष्पमापी यन्त्र के आंकड़ों के आधार पर स्थितिज वाष्पोत्सर्जन अनुपात 0 : 8 माना गया है ।
एक समूह में गीष्मकाल में 15 दिन तथा शीतकाल में 30 दिन रखे जाते हैं ।
गणना करते समय वर्षा न होने वाले दिनों को गणना समूह में नहीं रखते । इस प्रकार अधिकतम मान 100 से अधिक नहीं हो पाता ।
इस प्रकार से पूरे वृद्धिकाल की वर्षा के मासिक औसत की गणना सम्पूर्ण औसत अनुपात के आधार पर की जाती है ।
मृदा की जलधारण क्षमता कम होने तथा वाष्पोत्सर्जन के अधिक होने पर समूह कम दिनों का बनाते है ।
( ii ) वाष्पीकरण — वर्षण अनुपात विधि ( Evapo — transpiration method ) -
इस विधि अन्तर्गत मासिक औसत प्रभावकारी वर्षा तथा विभिन्न मासिक वर्षा मध्यमान में होने वाले वर्जन ( फसल ) के औसतमान भूमि की सिंचाई प्रभावकारी वर्षा , वाष्पोत्सर्जन एवं जल का उपभोग्य ( क्षयकारी ) प्रयोग के समय जल संचय क्षमता को 75 मिमी माना गया है ।
इस प्रकार भूमि की जल संचय क्षमता 75 से कम अथवा अधिक होने पर सारिणी में दिये गये सुधार घटक का उपयोग करते हैं ।
उदाहरणार्थ किसी स्थान की औसत मासिक वर्षा की गणना इस प्रकार होगी । 1 : 07 x 74 = 79 मिली मीटर
( iii ) मृदा नमी परिवर्तन विधि ( Soil moisture change method ) -
इस विधि के अन्तर्गत वर्षा अथवा सिंचाई से पूर्व वर्षा / सिंचाई के पश्चात् पौधे के जड़ से मिट्टी का नमूना लिया जाता है । लिये गये नमने से भारात्मक विधि के द्वारा मृदा में नमी की मात्रा ज्ञात की जाती है ।
इस प्रकार से वर्षा पूर्व एवं वर्षा उपरांत लिये गये नमूने में नमी की वृद्धि ‘ चं चामाकरण द्वारा नमी की क्षति का अन्तर प्रभावकारी वर्षा की मात्रा होती है ।
अधिक वर्षा के पश्चात् वर्षा बन्द होने तथा नमूना लेने के मध्य के वाष्पीकरण की स्थितिज दर से कल्पना कर लेते हैं ।
इसकी गणना निम्न प्रकार करते हैं — ER = ( M , — M ) + KC ET , यहाँ पर ER = प्रभावकारी वर्षा M = वर्षा पूर्व मृदा की नमी M , = वर्षा पश्चात् मृदा की नमी KC = फसल गुणाँक । ET , = वाष्पोत्सर्जन मिमी
( iv ) मृदा नमी सन्तुलन विधि ( Soil moisture balance method ) -
इस विधि के अन्तर्गत प्रतिदिन की मृदा नमी का लेखा रखा जाता है ।
इस लेखे में बहीखाते की तरह सामान प्राप्ति और व्यय के दो अलग — अलग पक्ष होते हैं । इसमें वर्षा अथवा सिंचाई के द्वारा प्राप्त मृदा नमी को प्राप्ति पक्ष में लिखते हैं तथा मृदा नमी ह्रास को व्यय पक्ष में लिखा जाता है ।
इस विधि में जलधारण क्षमता से अधिक उपलब्ध पानी को रिसाव अथवा अपवाह में नष्ट होना माना जाता है ।
मृदा नमी प्राप्ति पक्ष एवं क्षय पक्ष अगर शून्य होता है तो मृदा नमी में किसी प्रकार वृद्धि की सम्भावना नहीं रहती ।
सिंचाई में मृदा नमी को कमी शून्य नहीं होने दिया जाता । एक निश्चित नमी स्तर पर पुनः सिंचाई कर दी जाती है ।
जल का उपभोग्य प्रयोग अथवा क्षयकारी प्रयोग ( Consumptive Use of Water ) -
वाष्पीकरण एवं उत्स्वेदन की क्रियाओं द्वारा भूमि जल का भारी मात्रा में क्षय या हास ( Loss ) होता है ।
यह एक प्रकार से भूमि जल ( Soil water ) की कम से कम एवं कृषि की उपयोगितावादी दृष्टि से पानी की एक भारी फिजूलखर्ची है ।
यहां तक कि पौधे भी अपनी जड़ों द्वारा जितना पानी खींचते हैं , उनका 99 प्रतिशत से भी ज्यादा भाग उत्स्वेदन ( Transpiration ) द्वारा उड़ा देते हैं ।
अतः वाष्पीकरण और उत्स्वेदन दोनों के सम्मिलित रूप को अर्थात् वाष्पोत्स्वेदा ( Evapo — transpiration ) को ही जल का क्षयकारी प्रयोग ( Consumptive use of water ) कहते हैं ।
इसे निम्न प्रकार भी व्यक्त कर सकते हैं U = ET U = जल का क्षयंकारी प्रयोग ( Consumptive use of water ) ET = वाष्पोत्स्वेदन ( Evapotranspiration )
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