फसल किसे कहते है इसके महत्व एवं प्रकार
फसल किसे कहते है इसके महत्व एवं प्रकार ( What is a crop its importance and types )
फसल किसे कहते है ( What is Crop )
प्राचीन काल से ही मनुष्य भोजन के लिये प्रत्यक्ष अथव अप्रत्यक्ष रूप से पेड़ — पौधों पर निर्भर रहा है ।
प्रारम्भ में वह अपने अनुभव के आधार पर स्वयं उगी हुई वनस्पतियों एवं पेड़ — पौधों से भोजन प्राप्त करता था ।
कालान्तर में उसने अपने भोजन के लिये फसलों को उगाकर कृषि कार्य प्रारम्भ किया ।
समय के साथ — साथ जनसंख्या में वृद्धि के कारण मनुष्य की भोजन सम्बन्धी आवश्यकताओं में वृद्धि होती चली गई , जिसकी पूर्ति हेतु उसने निश्चित समयबद्ध कार्यक्रम के आधार पर फसल उत्पादन पर ध्यान केन्द्रित किया ।
वर्तमान समय में भी फसल उत्पादन के मूल सिद्धान्तों एवं नवीनतम् तकनीकों को अपनाकर मनुष्य फसलों के उत्पादन के नये लक्ष्य प्राप्त करने में निरन्तर प्रयासरत है ।
वर्तमान समय में हमारे देश की जनसंख्या लगभग 110 करोड़ है ।
इस जनसंख्या की खाद्य आपूर्ति के लिये कृषि उत्पादन की नवीनतम तकनीक के द्वारा हमारा कृषि उत्पादन भी लगभग 204 मिलियन टन तक पहुंच चुका है जिसके भविष्य में बढ़ने की प्रचुर सम्भावनाएँ हैं ।
फसल की परिभाषा ( Definition of crop )
मनुष्यों द्वारा अपने उपभोग के लिये कृषि क्षेत्र में एक निश्चित कार्यक्रम एवं योजनाबद्ध उपायों द्वारा उगाये गये अन्न , चारा , फल अथवा फूल आदि के पौधों के समूह को फसल कहते हैं ।
फसलों का महत्व ( Impotarance of crop )
* वायु शोधक
* कीट नियन्त्रण
* फल , फूल व बीज
* वर्षा सहायक प्रदूषण निवारक
* खाद्य सामग्री
* बाढ़ नियन्त्रक
* औषधियों की प्राप्ति
* ईंधन एवं चारा
* तापमान नियन्त्रक
* प्राकृतिक सम्पदा
* उद्योगों के लिये कच्चा माल
* आपदा नियन्त्रक
* भू — संरक्षण
* रोजगार के अवसर
* प्राण वायु
* ह्यमस निर्माण
* विदेशी मुद्रा की प्राप्ति
* मरूस्थल पर रोक
* जल संरक्षण
* राजस्व प्राप्ति
* पर्यावरण सन्तुलन
* वन्य जीव संरक्षण
* राष्ट्रीय सम्पन्नता एवं समृद्धि
कृषि उत्पादन की दृष्टि से उगाई जाने वाली फसलों को मौसम , उपयोग व आर्थिक महत्व , जीवन चक्र , वानस्पतिक समानताओं तथा इनमें अपनाई जाने वाली सस्य क्रियाओं के आधार पर वर्गीकृत किया गया है जो निम्न प्रकार हैं -
मौसम उपयोग तथा आर्थिक महत्व के आधार पर फसलों का वर्गीकरण निम्न प्रकार है -
मौसम के आधार पर फसलों का वर्गीकरण ( Classification of crops according to season )
जलवायु का पौधों की बुवाई से कटाई तक की विभिन्न अवस्थाओं पर सीधा प्रभाव पड़ता है ।
हमारे देश में जलवायु के विभिन्न घटकों जैसे तापमान , आर्द्रता , वर्षा वायु और प्रकाश आदि में बहुत अधिक भिन्नता पाई जाती है ।
मौसम के आधार पर हमारे देश में उगाई जाने वाली फसलों को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है -
( i ) खरीफ की फसलें ( Kharif crop ) -
इस ऋतु में लम्बी अवधि की फसलों जिनके लिये अधिक तापमान तथा आर्द्रता वाला मौसम अनुकूल होता है , उगाई जाती हैं ।
इन फसलों की बुवाई जून से जौलाई तक की जाती है , और ये फसलें सिम्बर — अक्टूबर माह में पककर कटाई के लिये तैयार हो जाती हैं । इस अवधि में लम्बे दिनों वाली अवस्था ( Long day conditions ) बनी रहती हैं ।
उदाहरण — धान , मक्का , ज्वार , बाजरा , जूट , ग्वार , कपास , पटसन , रागी मूंग , टैंचा , लोबिया तथा मूंगफली आदि ।
( ii ) रबी की फसलें ( Rabi crops ) -
इस वर्ग की फसलें कम तापमान पर छोटे दिनों वाली अवस्था ( short day conditions ) तथा कम प्रकाश चाहने वाली होती हैं ।
इन फसलों की बवाई अक्टूबर — नवम्बर में की जाती है ये फसलें मार्च — अप्रैल माह में पककर तैयार हो जाती हैं । इनकी कटाई के समय तापमान में वृद्धि होती है और तेज गर्म हवाएं चलती हैं ।
उदाहरण — इस वर्ग में गेहूँ जौ , चना , बरसीम , सरसों , मटर , आलू , टमाटर तथा मूली आदि फसलें आती हैं ।
( iii ) जायद की फसलें ( Zaid crops ) -
यदि सिचाई जल की पक्की व्यवस्था है तो इन फसलों की बवाई फरवरी मार्च में की जा सकती है और ये फसलें अप्रैल मई में पककर कटाई के लिये तैयार हो जाती हैं ।
इस अवधि में भीष्ण गर्मी , तेज गर्म हवाएँ तथा लू चलती हैं । इन प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन करके उगने की क्षमता इन फसलों में पाई जाती हैं ।
उदाहरण — इस वर्ग में ककड़ी , खरबूजा , खीरा , तरबूज , टिण्डा तथा तोरई आदि आते हैं ।
उपयोग एवं आर्थिक महत्व के आधार पर फसलों का वर्गीकरण ( Classification of crops on the basis of economic importance )
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि भूमि की सतह पर उगने वाले सभी पौधे अपना आर्थिक महत्व रखते हैं ।
कुछ पौधे आर्थिक दष्टि से अधिक उपयोगी होते हैं । जैसे — गेहूँ मक्का व धान आदि धान्य फसलों का महत्व बहुत अधिक है ।
आर्थिक लाभ की दृष्टि से भूमि पर उगने वाले सभी पौधों को निम्न वर्गों में विभाजित किया जाता है -
( i ) अनाज की फसलें ( Cereal crops ) -
इन फसलों के दाने अनाज के रूप में तथा वानस्पतिक अंग पशुओं के भोजन के लिये प्रयोग में लाए जाते हैं । ये फसलें मिनी कुल के अंतर्गत आती हैं ।
उदाहरण — मक्का , धान , ज्वार , बाजरा तथा गेहूँ आदि ।
( ii ) दलहनी फसलें ( Pulse crops ) -
इन फसलों के दानों में भरपूर मात्रा में प्रोटीन पाई जाती है और प्रायः इनका प्रयोग दाल के रूप में किया जाता है । इन वर्ग की फसलें लैम्युमिनेसी कुल के अंतर्गत आती है ।
इनके पौधों की जडो में गांठे पाई जाती हैं । इन गांठों में पाये जाने वाले जीवाणु पौधों की जडो में वायमण्डल की नाइट्रोजन को स्थिर करने का कार्य करते हैं ।
उदहारण — चना , मटर , लोबिया मंग , मसूर , सोयाबीन तथा मूंगफली आदि ।
( iii ) तिलहनी फसलें ( Oilseed crops ) -
इस वर्ग की फसलों के बीजों से तेल निकाला जाता है ।
उदाहरण — सरसों , तोरिया लाही . मूंगफली , अरण्डी तिल , कुसुम सुरजमुखी आदि । ये तेल खाद्य — पदार्थों में तथा नाना प्रकार से प्रयोग में लाए जात है ।
( iv ) रेशे की फसलें ( Fibre crops ) -
इस वर्ग की फसलों को रेशा प्राप्त करने के लिये उगाया जाता है । इस वर्ग में कपास , पटसन , जूट तथा सनई आदि आते हैं ।
( v ) औषधीय फसलें ( Medicinal crops ) -
कुछ पौधों में विशेष औषधीय गुण पाए जाते हैं जैसे नीम , तुलसी , मेन्था , पुदीना , अदरक तथा हल्दी आदि ।
( vi ) शाकथाजी की फसलें ( Vegetable Crops ) -
इस वर्ग के पौधों की जड़े तना . पत्तियाँ और फल कच्ची अवस्था में अथवा सब्जी बनाकर प्रयोग किये जाते हैं । इस वर्ग के पौधे विभिन्न कुलों से सम्बन्धित होते हैं ।
उदाहरण — आलू , गोभी , मूली , टमाटर , बैंगन , भिण्डी , तौरई , करेला आदि ।
( vii ) मिर्च एवं मसाले ( Spices and Condiments ) -
इस वर्ग की फसलों का चटनी तथा अचार में स्वाद एवं सुगन्ध आदि के लिये सूक्ष्म मात्रा में प्रयोग मिर्च , जीरा , धनिया , अजवाइन इलायची दालचीनी , तेजपात इत्यादि ।
( viii ) चारे की फसलें ( Forage crops ) -
घरेलू स्तर पर पालतू पशु जैसे गाय , भैंस , बेल , ऊँट आदि के चारे की आपूर्ति के लिये इन फसलों को उगाया जाता है ।
उदाहरण — मक्का , ज्वार , बाजरा , लोबिया , बरसीम , लुसर्न तथा नैपियर घास आदि ।
( ix ) शर्करा की फसलें ( Sugar crops ) -
इस वर्ग की फसलों को चीनी प्राप्ति के उद्देश्य से उगाया जाता है । सम्पूर्ण विश्व में चीनी बनाने के लिये दो प्रमुख फसलों गन्ना तथा चुकन्दर के रस का प्रयोग होता है तथा सम्पूर्ण विश्व की लगभग 65–70 % चीनी गन्ने के रस से बनाई जाती है ।
( x ) फलदार फसलें ( Fruit Crops ) -
इनको ऐसे वृक्षों के रूप में उगाया जाता है जो फल देते हैं । जैसे — केला आम , सेब , पपीता , अमरूद , नारंगी मौसमी तथा चीकू आदि ।
( xi ) जड़ तथा कन्द वाली फसलें ( Root and Tuber crops ) -
उन फसलों की जड़े एवं तना खाने के लिये प्रयोग में लाये जाते हैं ।
उदाहरण — चुकन्दर , मूली , गाजर व शलजम आदि ।
( xii ) उत्तेजक फसलें ( Stimulant crops ) -
इस वर्ग में ऐसी फसलें सम्मिलित होती हैं जिनके प्रयोग से शरीर में उत्तेजना पैदा होने लगती है ।
उदाहरण — भांग , गांजा , तम्बाकू काफी तथा चाय आदि ।
( xiii ) पेय पदार्थ प्रदान करने वाली फसलें ( Beverage Crops ) -
इन फसलों के उत्पाद से पेय पदार्थ बनाया जाता है जिसका बहुतायत से समाज के सभी लोगों द्वारा प्रयोग होता है ।
उदाहरण — चाय , कॉफी , कहवा तथा कोको आदि ।
जीवन चक्र के आधार पर फसलों का वर्गीकरण ( Classification of crops on the basis of life cycle )
पौधे के जीवनकाल का अर्थ है कि यह बुवाई से कटाई तक वह कितने दिनों में अपना जीवन चक्र पूरा करता है ।
कुछ पौधे अपना जीवन काल अल्प अवधि में ही समाप्त कर देते हैं । इन्हें कम अवधि वाले पौधे ( short duration plants ) कहते हैं ।
जबकि कुछ पौधे अपना जीवन काल पूर्ण करने के लिये लम्बी अवधि लेते हैं इसीलिये इन्हें लम्बी अवधि की फसलें ( Long duration crops ) कहा जाता है ।
वर्तमान समय में विभिन्न फसलों की छोटी अवधि वाली तथा लम्बी अवधि वाली अनेक जातियाँ विकसित हो चुकी हैं ।
पौधों के जीवन काल में लगने वाली इस अवधि के आधार पर ही फसलों को विभिन्न वर्गों में रखा गया है जिनका विवरण निम्न प्रकार है ।
1 . एकवर्षीय फसलें ( Annual crops ) -
इस वर्ग की फसलें बुनाई से कटाई तक एक वर्ष में इससे कम समय में अपना जीवन चक्र पूर्ण कर लेती हैं ।
इस अवधि में ये फसलें पककर पीली जड़ जाती है जो इनकी कटाई का उपयुक्त समय होता है ।
उदहारण — गेहूँ , जो , मक्का तथा धान आदि ।
2 . द्विवर्षीय फसलें ( Biennial crops ) -
इस वर्ग की फसलें अपना जीवन काल दो वर्ष या इससे कम समय में पूरा कर लेती हैं ।
इस अवधि के अन्तर्गत प्रथम वर्ष में ये फसलें वानस्पतिक वृद्धि करती है और अंतिम वर्ष में बीज बनाती हैं ।
3 . बहुवर्षीय फसलें ( Perennial crops ) -
इस वर्ग की फसलें अपना जीवकाल अनेकों वर्षों तक चलाती रहती है । ये अपनी वानस्पतिक वृद्धि अनिश्चित समय तक करती रहती है और इनके बीज भी साथ — साथ बनते रहते हैं ।
इन फसलों का जीवन क्षमता इनती अधिक होती है कि कटाई के बाद भी फसलें अपनी वानस्पतिक वृद्धि कर लेती है और इनमें बीज बन जाता है ।
( 4 ) वानस्पतिक वर्गीकरण ( Botanical Classification ) -
विभिन्न परिवार जैसे घास , मटर , सरसों , कपास , आलू , अलसी , कद्दू , जूट , अण्डी , कम्पोजिटी , चिनोपोडेसी , लिलीएसी , अम्बेलीफेरी , अदरक तथा शकरकन्द ।
( 5 ) विशेष उपयोग ( Special Uses ) के आधार पर वर्गीकरण -
हरी खाद , मृदा आरक्षित , अन्तर्वर्ती , नकदी , कीटाकर्षक , सहयोगी , बीथी , पेड़ी , रक्षक , पूरक , पोषक , शिकारी , मल्च वाली , मृदा सुधारने वाली तथा साइलेज वाली फसलें आदि ।
( 6 ) सस्य वैज्ञानिक वर्गीकरण ( Agronomic Classification ) -
मृदा की प्रकृति एवं धरातल ( nature & topography ) के आधार पर , पौधों के स्वभाव एवं आकार के आधार पर , फसल की अवधि के आधार पर , फसलों में की जाने वाली सस्य क्रियाओं के आधार पर तथा उपलब्ध सस्य संसाधनों के आधार पर वर्गीकरण आदि ।
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