फसलों की सिंचाई एवं क्रांन्तिक अवस्थायें
क्रांन्तिक अवस्था के समय फसलों में सिंचाई ( Irrigation in crops during the critical Stages )
फसलों की क्रांन्तिक अवस्थायें ( Revolutionary stages of crops )
( 1 ) धान क्रांन्तिक अवस्थायें ( Rice critical Stages )
धान की खेती के लिये अत्यधिक पानी की आवश्यकता होती है । यह अर्द्धजलीय पौधा है ।
धान की फसल में मुख्यतः चार क्रांतिक अवस्थायें ( Critical Stages ) होती है
( ii ) किल्ले निकलने की अवस्था
( iv ) पुष्पावस्था से दाना पुष्ट होने की अवस्था ।
इन अवस्थाओं पर धान में सिंचाई की आवश्यकता होती है । धान के खेत में आवश्यक निश्चित गहराई तक पानी रुकना आवश्यक होता है ।
धान के खेत में 5 सेमी० खड़ा पानी लगाना चाहिये । जब पानी सूख जाये तो पुनः भर देना चाहिये ।
( 2 ) गेहूं क्रांन्तिक अवस्थायें ( Wheat critical Stages )
गेहूँ की जल माँग का अनुमान 180 से 120 मि० मीटर के मध्य ‘ लगाया गया है ।
पर्याप्त नमी बनाये रखने के लिये गेहूं की फसल में 4 से 6 सिंचाईयाँ आवश्यक हैं ।
गेहूं की फसल में सिंचाई को जाड़ों की वर्षा काफी प्रभावित करती है ।
गेहूँ की फसल में सिंचाई क्रांतिक / संवेदनशील अवस्था ( Critical / sensitive stage ) पर करनी चाहिये ।
( i ) जड़ निकलने की अवस्था पर अथवा बोने के 20–25 दिन के बाद
( ii ) किल्ले फूटने की अवस्था बोने के 40–45 दिन बाद
( iii ) तने एवं गाँठ बनने की अवस्था पर 50 से 60 दिन के बाद
( iv ) पुष्पावस्था — 85 से 90 दिन बाद ( v ) दूधियावस्था — 100 से 105 दिन बाद
( vi ) दाने पुष्ट होने की अवस्था — 115 से 120 दिन बाद । इन सभी अवस्थाओं पर आवश्यकतानुसार सिंचाई आवश्यक है ।
( 3 ) मक्का क्रांन्तिक अवस्थायें ( Maize critical Stages )
मक्का की फसल के लिये पानी की कमी एवं पानी की अधिकता दोनों स्थिति नुकसानदायक होती हैं ।
मक्का की सिंचाई भूमि की किस्म एवं उगने के मौसम के अनुसार अन्तर आता है ।
मक्के की फसल की क्रांतिक अवस्थायें
( i ) वानस्पतिक वृद्धिकाल — यह फसल बोने के 20 से 40 दिन बाद तक होता है ।
( ii ) नर पुष्प निकलने की अवस्था
( iii ) रेशमी बाल निकलने की अवस्था
( iv ) तीव्र वानस्पतिक वृद्धि अवस्था
( v ) दूधियावस्था क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई की आवश्यकता होती है । सिंचाई के अभाव में उत्पादन में कमी आ जाती है ।
( i ) कपास क्रांन्तिक अवस्थायें ( Cotton critical stages )
कपास की फसल नमी संवेदनशील होती है । इसकी जल माँग 400 से 700 मी० मी० है ।
वृद्धि की विभिन्न अवस्थाओं में जल माँग में अन्तर आ जाता है ।
जलवायु सम्बन्धित आंकड़ों के आधार पर इसमें 0–6 से 0–75 सिंचाई जल / संचयी पैन वाष्पमापी अनुपात पर सिंचाई करनी चाहिये ।
( ii ) गन्ना क्रांन्तिक अवस्थायें ( Sugarcane critical stages )
इस फसल में तना अत्यंत उपयोगी होता है । इस फसल | को निरन्तर नमी की आवश्यकता होती है ।
गन्ने की कटाई से पहले कम मात्रा में सिंचाई करने से गन्ने के रस में मिठास ( शर्करा ) बढ़ जाती है ।
गन्ने के पूर्ण वृद्धि काल में मृदा नमी स्तर 65 प्रतिशत बनाये रखना जरुरी होता है ।
इसकी सम्पूर्ण जल माँग 1800 से 2200 मि० मी० होती है ।
( iii ) चारे की फसलो की क्रांन्तिक अवस्थायें ( critical stages of fodder crops )
चारे की फसलों के अन्तर्गत बरसीम , लूसर्न , रिजका , नैपीयर घास , सूडान घास , गिनी घास आदि आती हैं । चारे की फसलों का सम्पूर्ण वानस्पतिक भाग उपयोगी होता है ।
इसे पर्याप्त मात्रा में जल आपूर्ति की आवश्यकता होती है । विभिन्न फसलों की जल माँग का स्तर अलग — अलग होता है ।
चारे की बहुवार्षिक फसलों से अधिक उपज लेने के लिये 0–75 सिंचाई जल / संचयी वाष्पमापी अनुपाते पर सिंचाई करनी चाहिये ।
( iv ) तम्बाकू क्रांन्तिक अवस्थायें ( Tobacco critical stages )
तम्बाकू की जड़े अधिक गहरी एवं फैली हुई होती हैं । इसके लिये अधिक मृदा नमी हानिकारक होती है ।
इसकी जल माँग 450 से 500 मि० मी . होती है । इसके लिये 8 से 10 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है ।
इसकी सिंचाई करते समय पानी की गुणवत्ता ( Quality ) पर ध्यान देना आवश्यक होता है ।
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