बीज एवं बीज उत्पादन का महत्व

Agriculture Studyy
7 min readApr 28, 2020

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बीज उत्पादन का महत्व एवं प्रौद्योगिकी का क्षेत्र ( Importance of seed production and field of technology )

बीज की परिभाषा ( Definition of seed )

बीज पद के अन्तर्गत सस्यों के बीज , खाद्य तैलीय बीज , फलों के बीज , सब्जियों के बीज कपास बीज , चारे की फसलों के बीज , बीजान्कुर तथा कन्द , शल्क कन्द , प्रकन्द , जडे , सभी प्रकार की कलमे , घास एवं अन्य वनस्पतिक प्रवर्धित चारे की फसलों के सम्भाग तथा पशुओं के चारे सम्मिलित होते हैं ।

बीज उत्पादन का महत्व ( Importance of seed Production )

प्राथमिक रूप से खाद्यान्नों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी का श्रेय अधिक उपज देने वाली प्रयास किये गये किस्म के प्रजनन का है ।

हालांकि सभी फसलों में उन्नत किस्मों के प्रजनन के प्रयास किय है तथापि पादप प्रजनन के क्षेत्र में दो प्रमुख घटनाओं से बीज उत्पादन का महत्व बढ़ा है ।

( i ) मक्का की संकर किस्मों का विकास

( ii ) गेहूँ तथा चावल की बौनी

सन् 1963–64 तक कृषि उत्पादन निम्नस्तर पर स्थिर अवस्था या अपेक्षित कम ( लगभग 50 करोड़ ) होने के बावजूद खाद्या पड़ता था ।

सन् 1956 में PL480 ( Publ “ के छूट पर आयात ( ConceSSIO आपूर्ति हो पाती थी । सन् 1951 से 1962 तक ( Concessional import ) प्रारम्भ किया गया ।

जिससे म्नस्तर पर स्थिर अवस्था में था । देश की । के बावजूद खाद्यानों का आयात करना 50 ) के अंतर्गत संयुक्त राज्य अमेरिका से गेहूं कया गया ।

जिससे देश में खाद्यान्नो की 1962 तक खाद्यान्नों के उत्पादन में केवल 287 प्रतिशत आधा भाग क्षेत्रफल में वृद्धि तथा आधा भाग 6 से 1978 तक की अवधि में खाद्यान्नों धिकांशतः उत्पादकता में वृद्धि के कारण उत्पादकता के फलस्वरूप में के उत्पादन में लगभग 4 प्रतिशत हुई जिसका श्रेय संकर एवं अ की दर से वृद्धि हुई ।

जिसमें लगभग आधा भाग ३ लस्वरूप था । परन्तु उसके बाद 1966 से 1978 तन मग 4 प्रतिशत प्रतिवर्ष की वद्धि अधिकांशतः उत्पा अयं संकर एवं अन्य उन्नतशील बीजों को है ।

रोह तथा धान में बौनी किस्मों के प्रचलन , रासायनिक उर्वरकों की प्रचुरता तथा सिंचाई के साधनों के कारण खाद्यान्नों के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई ।

जिसे कि हरित क्रान्ति के नाम से जाना जाता है । इसके फलस्वरूप अब देश की वृहत जनसंख्या ( लगभग 120 करोड़ ) के लिये खाद्यान्नों के आपूर्ति स्वयं उत्पादन से हो जाती है ।

आनवंशिक शुद्ध तथा अधिक उपज देने वाला बीज लाभप्रद फसल उत्पादन का आधार होता है ।

पादप प्रजननक , उत्तम बीज का विकास करता है तथा उसकी अनुकूलता को देश तथा स्थानीयता में परीक्षण करता है ।

ये किस्में परीक्षण केन्द्र से मान्य की जाती है तथा संस्तुत कर दी । जाती हैं जिससे कृषक को अधिकतम लाभ प्राप्त हो सकें ।

अनुसन्धान केन्द्र , सर्वदा इस स्थिति में नहीं रहते है कि किसानों की आवश्यकतानुसार उन्नत शुद्ध बीज दे सके क्योंकि सविधायें तथा कार्य सीमित होता है ।

व्यवस्थित कार्यक्रम न होने के कारण अनुसन्धान केन्द्र से दिया गया बीज कुछ वर्षों तक ही शुद्ध रह पाता है क्योंकि उसमें मिश्रण , प्राकृतिक संकरण तथा उत्परिवर्तन से अशुद्धतायें आ जाती हैं ।

इन परिस्थितियों में बीज अधिकतम किसानों की माँग के अनुकूल बढ़ तो जाता है ।

परन्तु उसकी आनुवंशिक शुद्धता तथा सामान्य विशेषतायें जो कि उन्नत किस्म में थी , लगभग बदल जाती है तथा उसकी उत्तमता उपयुक्त नहीं रहती हैं ।

जिससे कृषको को पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं होता है ।

संयुक्त राज्य अमेरिका , आस्ट्रेलिया , कनाडा तथा अधिकतर युरोप के देशों में उत्तम किमो के बीजों की आनुवंशिक शुद्धता बनाये रखने के लिये , बीज का वर्धन , अनुरक्षण तथा वितरण नियमित तरीके से किया जाता है तथा बीज सर्टिफिकेशन सेवायें स्थापित की गई है ।

नई किरण को विकसित करने तथा उपयोग में लाने तक का उत्तरदायित्व , प्रजनन ( breclirg ) सर्टिफिकेशन तथा व्यावसायिक बीज वर्धन पर है ।

डॉ० ए० ए० जॉनसन के विचार के अनुसार ,

बीज उत्पादन , वर्धन तथा वितरण वह विधि है जिससे बीज प्रयोगकर्ताओं को यह विश्वास होता है कि उन्हें उसे उत्तम किस्म को उगाने से अन्त तक बीज की उत्तमता की रक्षा होने से मूल्य मिलेगा , बीज शुद्ध है तथा उत्तम गुण तथा आपेक्षित हानिकारक बीमारियों से रहित है ।

उत्तम बीज की आनुवंशिकता ( Heredity of quality seed )

उत्तम बीज की आनुवंशिकता ( heredity ) का ज्ञान रहता है तथा अनुसन्धान केन्द्र के रिकार्डस में , उसकी वंशवली को देखा जा सकता है तथा खेत के बीज का मौलिक बीज निरीक्षण द्वारा अपेक्षा की जा सकती है ।

इसके द्वारा कृषक को उत्तम तथा शुद्ध बीज प्राप्त होता अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के अनुसार बीज प्रमाणीकरण ( Seed certification ) के ध्येय का संक्षेप में निम्न प्रकार से माना जा सकता है ।

बीज प्रमाणीकरण ( Seed Certification )

बीज प्रमाणीकरण का ध्येय जनता को फसलों की उत्तम किस्मों का उच्च गुणता का बीज तथा प्रर्वधन पदार्थ प्रदान करना है जिसके उगाने एवं वितरण में पूर्ण आनुवंशिक सर्वसमिका रखी गई हो ।

केवल वे किस्में जिनका जर्मप्लाज्म उत्कृष्ट होता है उनका ही प्रमाणीकरण किया जाता है । प्रमाणीकृत बीज की उपजातीय शुद्धता ( Varietal purity ) तथा अंकुरण क्षमता उत्तम होती है ।

करण से कृषकों को अधिक मात्रा में आनुवंशिक रूप से शुद्ध वं बीज प्रमाणीकरण से कृषकों को अधिक अल्य पर शीघ्रातिशीघ्र प्रदान किया जाता है ।

संसार के अधिकतर देशों में खाटा — की मांग आपूर्ति के अनुपात में अधिक है अतः उन नेणों में खाद्य पदार्थों का अभाव है ।

अत : उन्नत बीजों का त है क्योंकि उन्नत बीजों से फसल उत्पादकता बढ़ सकती हैं ।

भारत में गेहूं , चावल , मक्का , कपास , तिलहन , दलहन एवं शाक — सब्जियों के बीज के अनपात में अधिक है अतः उन्नत बीजों को अत्यधिक कमी है ।

स्पष्ट : भारत तीजोत्पादन के व्यवसाय के लिए विशाल एवं व्यापक क्षेत्र विद्यमान है । वशील बीजों के महत्व के परीक्षेप में कई राज्यों ने उन्नत बीजों के प्रयोग तथा ावना के नियमन के लिए , अधिनियम बनाये है ।

कृषि के उद्देश्य से विक्रय के लिये किसी भी प्रकार या किस्म के बीज की गुणवत्ता के नियमन हेतु संसद ने 1966 में बीज अधिनियम पारित किया जो कि एक अटूबर 1969 में लागू हुआ ।

अधिनियम में उन्नत किस्मों के बीजों के प्रमाणीकरण का प्रावधान है तथा बोने के लिए बीज के व्यवसायिक विक्रय पर नियन्त्रण का प्रावधान है ।

देश में बीज उत्पादन की महत्ता के दृष्टिकोण से भारत सरकार ने राष्ट्रीय बीज निगम

( N . S . C . — National Seeds Corporation ) की सन् 1963 में स्थापना की ।

इसका प्राथमिक उद्देश्य सुदृढ़ बीज उद्योग का प्रबन्ध एवं विकास करना है ।

मौलिक रूप से इसका ध्येय आधार वीज का उत्पादन , अनुरक्षण एवं वितरण संस्थान के रूप में कार्य करना है ।

1 , कृषि बीजों का उपादन संसाधन , सुखाना , अनुरक्षण , वितरण एवं उपयुवत स्थानों पर परिवहन करना ।

2 . व्यक्तियों सहकारी समितियों , निगमों तथा सरकारी एजेन्सियों से समझौता करने कृषि दन , संसाधन , सुखाना , अनुरक्षण वितरण तथा परिवहन करना ।

3 . बीजों की गुणवत्ता के अनरक्षा के लिए निरीक्षण करना । स्तर पर नियंत्रण रखना ।

4 . भारत में कृषि उत्थान के लिए प्रत्य ervation ) , अनुरक्षण भंडारण एवं वितरण करना । केन्द्र रूप से भारत में अनुसन्धान एव । नियंत्रित अनुसंधान संस्थानों तथा कृषि वि में स्थापित करने का उत्तरदायित्व भारतीय कृषि अनुसंधान का है । अनुसन्धान एवं प्रजनन भारतीय अनुसंधान परिषद् द्वारा सम्पन किया जाता है ।

इनमें यि के अनुसंधान परिषद बीज उत्पादन प्रौद्या उत्पादन प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में व्याख्या

बीज उत्पादन प्रौद्योगिकी का क्षेत्र ( Field of seed production technology )

( 1 ) उन्नत किस्म के बीज का उत्पादन सम्पूर्ण अनुकूलित क्षेत्र में व्यवसायिक रूप से उगाने के लिए पर्याप्त हो ।

( 2 ) किस्मीय शुद्धता ( varietal purity ) का प्रावधान हो । ऐसा न करने पर उन्नत किस्म का विकास करना व्यर्थ हो सकता है ।

इन समस्याओं के समाधान के लिए संसार के अधिकतर देशों ने पादप प्रजनन के उत्पादों के नियमित रूप से वर्धन increase ) , वितरण ( distribution ) एवं अनुरक्षण ( mainte nance ) के लिए प्रविधियों ( procedures ) का विकास किया है ।

सामान्यत : नई किस्मों के विकास तथा उपयोग की प्रविधियों के उत्तरदायित्व के तीन सम्बन्धित क्षेत्रों की पहचान की गयी है ।

2 . प्रमाणीकरण ( Certification )

3 . व्यावसायिक बीज उत्पादन ( Commerict Seed Production )

उत्तरदायित्व के इस विभाजन में पादप प्रजनन का प्राथमिक कार्य नई किस्म को विकसित करना तथा छोटे पैमाने पर बीज का वर्धन होता है ।

प्रमाणीकरण एजेन्सी का सम्बन्ध बीज उत्पादकों को बीज प्रदान करने के क्रियात्मक नियमन से है तथा यह उत्पादन के नियमन ( regulation ) तथा विपणन ( marketing ) की व्यवस्था करता है।

जिससे किस्मीय शुद्धता तथा बीज गुणवत्ता के उचित मानकों को निश्चित रखा जाये ।

व्यवसायिक बीज उत्पादन का उत्तरदायित्व बीज वालों ( seedsmen ) तथा चयनित कृषकों का होता है।

जिनके पास शुद्ध बीज को बड़ी मात्रा में उगाने , स्वच्छ करने तथा विपणन करने का साधन ( equipment ) तथा अनुभव ( experience ) होता है ।

सामान्यत : किस्म के विकास तथा वितरण की ये तीनों अवस्थायें व्यक्तियों के पूर्णत : अलग — अलग वर्गों की होती हैं ।

परन्तु कभी कभी दो या यहाँ तक ही तीनों अवस्थायें एक ही व्यक्ति वर्ग भी करता है ।

Originally published at https://www.agriculturestudyy.com.

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