सिंचाई की विधियाँ ( Method of Irrigation )

Agriculture Studyy
5 min readApr 22, 2020

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सिंचाई की विधियां ( Method of Irrigation )

सिंचाई की परिभाषा ( Definition of irrigation )

फसलोत्पादन में जल के अभाव में पौधे को जीवन असम्भव होता है ।

पौधों को जीवनकाल में अधिक मात्रा में जल की आवश्यकता होती है ।

प्राकृतिक रुप से जल की आवश्यकता पूर्ति नहीं हो पाती अतः पौधे की वृद्धि एवं विकास के लिए कृत्रिम रुप से पानी की व्यवस्था करनी पड़ती है, जिसे सिंचाई ( Irrigation ) कहते हैं

इस प्रकार सिंचाई को निम्न प्रकार परिभाषित कर सकते हैं, कृत्रिम रुप से को पानी देने को कहा जाता है ।

सिंचाई के उद्देश्य ( Purposes of irrigation )

सिंचाई के उद्देश्य मृदा में सिंचाई निम्नलिखित उद्देश्यों से की जाती है

( iv ) मृदा के अन्दर उपस्थित लवणों को घोलने एवं उन्हें मृदा से बाहर निकालने के लिये ।

( v ) भूमि की कठोर परत को नम करने के लिए ।

सिंचाई के मूल सिद्धान्त ( Principles of Irrigation )

सिंचाई के कुछ प्रमुख मूल सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं ।

( i ) फसलों में नमी का स्तर बनाये रखना चाहिए . मृदा में जल का 60 प्रतिशत भाग नष्ट हो जाने पर पुनः सिंचाई कर देनी चाहिए ।

धान के अलावा अन्य में एक घण्टे से अधिक पानी नहीं रुकना चाहिए । इससे पर विपरीत हानिकारक प रभाव पड़ता है ।

(करने से पहले खेत को समतल करके इसमें उचित प्रकार से क्यारी , मेड़ , नाली बना लेनी चाहिए जिससे कम से कम पानी अधिक क्षेत्रफल की सिंचाई के लिए उपयोग हो सके ।

( iii ) सिंचाई के उपरान्त पानी की क्षति को रोकने के लिए नमी संरक्षण प्रविधि , पलवार या खरपतवार नियन्त्रण द्वारा कम करने के प्रयास होने चाहिए ।

( iv ) सिंचाई प्रक्रिया इस प्रकार की होनी चाहिए जिसमें जल सम्पूर्ण नमी क्षेत्र में फैले । इससे मृदा में पोषक तत्त्व आपूर्ति , जीवाणु प्रजजन , पौधे में ऊतक , वृद्धि सम्बन्धी सहायता मिलती है ।

( v ) सिंचाई के साथ कीटनाशकों का प्रयोग मितव्ययी होता है ।

सिंचाई की विधियाँ ( Method of Irrigation )

सिंचाई की तीन प्रमुख विधियाँ होती है, जिनके माध्यम से फसलों की सिंचाई का प्रयास किया जाता है ।

( 1 ) सतही सिंचाई ( Surface Irrigation )

( 2 ) बौछारी सिंचाई ( Sprinkler Irrigation )

( 3 ) अवभूमि सिंचाई ( Sub Surface or Dirp , Trikle Irrigation )

( 1 ) सतही सिंचाई ( Surface Irrigation )

सिंचाई की यह विधि अत्यन्त प्राचीन है । कुल सिंचित क्षेत्र का 95 प्रतिशत भाग आज भी इसी विधि द्वारा सिंचित किया जाता है ।

इस विधि को धरातलीय अथवा गुरुत्वीय सिंचाई ( Gravity Irrigation ) के नाम से भी पुकारते हैं ।

इस विधि में जल प्रवाह को खेत के ऊपरी भाग पर फैलने के लिए खोल दिया जाता है ।

यह प्रक्रिया समतल भूमियों के लिए उपयुक्त होती है । भूमियों में जल वितरण में असमानता हो जाने के कारण असुविधा होती है ।

सतही सिंचाई विधि के लाभ ( Advantages of Surface Irrigation Method )

सिंचाई की अन्य विधियों की तुलना में इसमें प्रारम्भिक व्यय कम होता है । यह विधि आसान एवं सुविधाजनक होती है ।

इसमें विभिन्न यन्त्रों की आवश्यकता नहीं पड़ती हैं । अतः छोटे किसानों के लिए सुविधाजनक होती है ।

सतही सिंचाई से हानियाँ ( Disadvantages ) -

इस विधि की जल प्रयोग दक्षता कम होती है । इसमें पर्याप्त जल की क्षति होती है ।

इसमें पोषक तत्व के नष्ट होने की सम्भावना रहती है , अधिक जलभराव हो जाने के कारण भूमि ऊसर बनने की सम्भावना भी रहती है ।

यह विधि पानी की अत्यन्त कमी वाले के लिए है इस विधि में क्रमशः कम एवं अधिक वाली को पट्टियों में लगाया जाता है तथा पट्टियों में ही सिंचाई की जाती है ।

इस प्रकार से नमी अधिक नमी वाली पट्टी ३ कम नमी वाली पट्टी की और बढ़ती है जिससे कम नमी चाहने वाली फसल की सिंचाई स्वतः होती रहती है । इस प्रकार दोनों को लाभ होता है ।

( 2 ) बौछारी सिंचाई ( Sprinkler Irrigation )

सिंचाई की इस विधि में जल पाइप लाइन के माध्यम से छिड़काव स्थल पर ले जाया जाता है ।

जहाँ पर फुहार के माध्यम से वर्षा की बूंदों की तरह जल फसल पर छिड़का जाता है ।

इस विधि को ओवर हैड सिंचाई प्रणाली भी कहते हैं । यद्यपि इस विधि में प्रारम्भिक व्यय अधिक होता है । लेकिन सिंचाई की उत्तम विधि है ।

सतही सिंचाई की तुलना में इस विधि द्वारा 25 से 30 प्रतिशत सिंचाई जल की बचत होती है ।

इस विधि को प्रोत्साहन देने के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकारें कृषकों को संयन्त्र लगाने के लिए अनुदान दे रही है ।

बौछारी प्रणाली बौछारी सिंचाई के लाभ ( Advantages of Sprinkler Irrigation )

( i ) इस विधि में सिंचाई के लिए नालियों में बनाने एवं उनकी देखरेख की आवश्यकता नहीं होती इससे श्रम एवं व्यय की बचत होती है ।

( iii ) जलश्रोत से अधिक ऊँचाई पर स्थित खेतों में भी इस विधि से सिंचाई सम्भव है

बौछारी सिंचाई की हानियाँ ( Disadvantage of Sprinkler Irrigation )

( i ) इस विधि से सिंचाई करने में प्रारम्भिक व्यय अधिक आता है । अन्त्र के रख रखाव एवं संचालन पर अधिक खर्चा होता है ।

( iii ) फंफूद जनित रोग से संवेदनशील फसलों पर सिंचाई के लिए यह विधि उपयुक्त नहीं है ।

( iv ) हानिकारक लवणों के प्रति संवेदनशील फसलों के लिए इस विधि से सिंचाई करना उपयुक्त नहीं है । घुलनशील लवणयुक्त पानी से सिंचाई करने पर उत्पादन प्रभावित होता है ।

( 3 ) अवभूमि सिंचाई ( Sub — Surface Irrigation )

अवभूमि सिंचाई के अन्तर्गत पौधों के जड़ क्षेत्र को एक छेद युक्त पाइप के माध्यम से पानी दिया जाता है ।

इस विधि का प्रयोग अधिक गहरे एवं 2 मीटर के लगभग गहराई में स्थित कठोर पटल वाली भूमियों में किया जाता है ।

भूमि में 15 से 30 मीटर अन्तराल पर चौडी एवं गहरी खाई खोदी जाती है । खाई को पानी से भर दिया जाता है । इस खाई से रिसकर फसलों को पानी मिलता है ।

भारतवर्ष में यह विधि केरल में नारियल के पेड़ों एवं कश्मीर में की के लिए प्रयुक्त होती है ।

यह विधि उथले जल स्तर वाली भूमियों के लिए उपयोग होती है ।

( 4 ) टपकदार या बूंद — बूंद सिंचाई ( Drip or Trikle Irrigation )

यह विधि सिंचाई की नयी विकसित विधि है । यह कम जल उपलब्धता वाले स्थानों में प्रयोग की जाती है ।

सन 1940 में इजराइल के इंजीनियर सिमका ब्लास ( Simca Blase ) ने देखा कि पानी की टोंटी से रिसाव होने वाले स्थान के वृक्षों की वृद्धि उसके आस पास के वृक्ष से अधिक थी ।

इसके आधार पर उन्होंने वर्ष 1964 में टपकदार सिंचाई पद्धति विकसित की साथ ही उसको पेटेन्ट भी कराया । साठवें दशक के अन्त में , आस्ट्रेलिया संयुक्त राष्ट्र ।

अमेरिका एवं विश्व के अनेक देशों में इसका प्रयोग हुआ । आज इस विधि का सभी देशों में व्यापक प्रचार — प्रसार दआ है ।

इस विधि में भूमि के भीतर प्लास्टिक का जालीयुक्न पाइप हुल स्तर से नीचे पौधों जड क्षेत्र में स्थापित किया जाता है।

यांत्रिक विधि द्वारा उत्सर्जक की सहायता से जल को सिंचाई क्षेत्र में प्रदान किया जाता है ।
विभिन्न अध्ययनों के आधार पर सिद्ध हो चुका है ।

Originally published at https://www.agriculturestudyy.com.

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