सूखा या जलाभाव ( Drought )
जलाभाव या सूखा क्या है, ये कितने प्रकार का होता है एवं इसके क्या परिणाम है ( What is drought, types of drought and Results of drought )
सूखा या जलाभाव का अर्थ ( Meaning of drought )
सम्भवतः जलाभाव सबसे अधिक पाया जाने वाला प्रतिबल ( Stress ) है जिसे पौधों को सहना पड़ता है ।
जलाभाव मृदा या वायुमण्डल या दोनों की ऐसी अवस्था होती है , जिससे पौधों को उसके कार्यों के लिये पर्याप्त जल प्राप्त होने में रुकावट या अवरोद्ध होता है ।
सूखा या जलाभाव के प्रकार ( Types of drought )
( 1 ) मृदा में पर्याप्त जल होने पर भी पौधे की मृदा से जल शोषण करने में अयोग्यता होना । इस अवस्था को “ शरीर क्रियात्मक जलाभाव “ ( Physiological drought ) भी कहते हैं ।
कच्छ ( marshes ) तथा दलदल ( bogs ) में उगने वाले पौधों को उनकी आवश्यकता के लिये पर्याप्त जल प्राप्त होने में कठिनता होती है।
हालांकि जिन मृदाओं में वे उगे होते हैं । वे जल से संतृप्त होती है । इन पौधों में मरुदभिदय ( Xeromorphic ) शारीरय गुण होते हैं ।
बर्फीली मृदाओं ( frozen soils ) से पौधों की जल अवशोषित करने की अयोग्यता , जबकि अत्यधिक जल होता है तथा वायुवीय भागों को जल की आवश्यकता भी होती है , शरीर क्रियात्मक जलाभाव का दूसरा उदाहरण है ।
शीत या बर्फीली मदाओं में जड़ी द्वारा जल अव — शोषण में अवरोध होता है जबकि तेज पवन से वाष्पोत्सर्जन अत्यधिक होता ह जिससे पौधों को आघात ( injury ) होता है ।
( 2 ) जलाभाव अधिकतर मृदा में पर्याप्त जल के अभाव में होता है या बायु की उच्च वाष्पीकरण शक्ति के कारण होता है जिससे दोनों , मृदा तथा पौधे की आर्द्रता ( moisture ) का अवक्षय ( deplete ) हो जाता है ।
मृदा में जल के अभाव की स्थिति को मृदा जलाभाव कहते हैं । आपेक्षित उच्च मृदा आर्द्रता की अवस्था होने पर भी पौधे का आघात बिन्दु तक शुष्कन “ वायुमण्डलीय जलाभाव “ कहलाता है ।
सूखा या जलाभाव के परिणाम ( Results of drought )
निर्जलीकरण के परिणाम ( Consequences of Dehydration )
निर्जलीकरण का प्रथम प्रत्यक्ष परिणाम सम्भवत : जल अणुओं की हानि होती है जो कोलाइडी मिसेल ( colloidal micells ) या झिलिल्यों तथा प्रोटीन्स की तृतीयक रचनाओं की जटिल संवलनों पर रक्षण स्तर का कार्य करते हैं।
जल अण रासायनिकों के विलायक का कार्य करते हैं तथा अन्तरालक ( spacer ) का कार्य भी करते हैं जिस कारण जटिल द्रव्यों को स्थायी विन्यास में रखने में सहायता करते हैं ।
यदि जल अणुओं को हटा दिया जाता है तो आवेशित कण समीप — समीप आ जाते हैं ।
इससे विलयन केवल अधिक सान्द्र ही नहीं होता है बल्कि प्रतिक्रियाशील कोलाइडल सतह इतने समीप आ जाती है कि वे सम्मिलन कर जाती है तथा विकृत हो जाती है ।
कोशिका — रस तथा अंतराकोशिकी द्रव्य की बढ़ी हुई सान्द्रता से द्रव्य का जल विभव ( water potential ) अत्यधिक घट जाता है जिससे प्रोटोप्लाज्म प्रतिबल होता है ।
सान्द्रता बढ़ने के दसरे दुष्प्रभाव होते हैं जैसे कि जैव रासायनिक प्रक्रियाओं में असन्तुलन हो जाता है , अणुओं का विदारीकण ( disruption ) हो जाता है ।
कुछ विलायकों की अधिक सान्द्रता से प्रोटीन्स का लवण प्रभावी होता है तथा आयनीकृत अम्लीय या क्षारीय विलायकों की सांद्रता बढ़ने से कोशिका DH में परिवर्तन हो सकता है ।
जलाभाव सहनता की शरीर — क्रियायें ( Mechanisms of Drought Tolerance )
क्योंकि जलाभाव के विविध प्रभाव होते हैं , अतः जलाभाव सहनता की विभिन्न शरीर — क्रियायें विकसित हुई प्रतीत हैं ।
कल्पनात्मक रूप से सभी स्थल पादपों ( land plants ) में कुछ क्रम की जलाभाव सहनता होती है ।
अधिकतर पौधोंमें यह प्रोटोप्लाज्म में जलस्नेही पदाथों ( hydrophylic substances ) की उपस्थिति के कारण प्रतीत होती है । ये जटिल , उच्च अणुभार के पदार्थ हो सकते हैं।
जैसे कि प्रोटीन्स या विशिष्ट कार्बोहाइड्रेट्स जैसे कि एलजिनिक एसिड तथा दूसरे कोलाइडी बहुशर्कराइड निम्न अणुभार के पदार्थों का दो प्रकार से प्रभाव हो सकता है ।
कुछ प्रबल रूप से ही जलस्नेही हो सकते है जैसे की पॉलिहाइड्रिक ऐल्कोहल जो कि सामान्यत : बेलाचंली सीविडस ( littoral sea weeds ) में पाये जाते है ।
ये पौधे ज्वार — भाटों के बीच अति शष्क प्रतिबलों में रहते हैं तथा क्युटिकली रक्षण से भी वंचित रहते हैं अतः ये जल रोके रखने या धारण करने के लिये आन्तरिक प्रयुक्तियों ( internal devices ) पर निर्भर रहने चाहियें ।
निम्न अणुभार के कुछ पदार्थ जेसे शर्करा ( sugar ) , हालांकि विशिष्ट रूप से जल स्नेही नहीं होते हैं तथापि अक्सर ये जलाभाव काल म विस्तृत ( elaborated ) हो जाता है।
क्योंकि विलयन में इनकी उपस्थिति कोशिकाओं का जल — विभव ( water potential ) प्रत्यक्ष रूप से निभ्न हो जाता है जिससे जल धारण करने में सहायता मिलती है ।
इस प्रकार की प्रयक्तियाँ केवल जल संरक्षण करती हैं तथा इनसे कोमल प्लाज्म का निर्जलिकरण रक्षण नहीं होता है ।
कोलाइडस या प्रबल विलयनों द्वारा दृढता सरुद्ध जल साइटोप्लाज्म से भी इतनी प्रबलता से अवरुद्ध ( with held ) हा जाता है ।
इस अकार कुछ पौधों में बहत उच्च शर्करा की सान्द्रता होने पर भा , जस गन्ना , जलान सवदा ( susceptible ) होते हैं . जबकि दसरे जैसे की चीड़ , में शर्करा या दूसरे विलेय ( sugar ) , हालांकि विाजाता है क्योंकि विलाता है जिससे जल की प्रयुक्तियाँ केवल या प्रबल विलया ।
इस से रुद्ध जल साइटोप्लाज्म स शर्करा की सान्द्रता होन बीड , में शर्करा हैं ।
प्रमाणिक म को आधार भूत रसायन की frointes ) की सान्द्रता निम्न होने पर भी अत्यधिक प्रतिरोधक ( resistant रूप से . जलाभाव प्रतिरोधता के महत्वपूर्ण कारक प्रोटोप्लाज्म की आधार भत रस अधिक गहनता में निहित है ।
शरीर — क्रिया वैज्ञानिक वाडिया ( Y . Vaadia ) के अनुसार जलाभाव कालिन ( drought hardiness ) जल की प्रोटीन्स के साथ बद्ध होने की योग्यता पर है ।
इस प्रकार का बन्ध जल हिम की क्रिस्टेलाइन अवस्था जैसे विन्यास में हो सकता कि ऊतकों से निष्कासन का प्रबल प्रतिरोधक होता है ।
जलाभाव के प्रतिबल कालकर प्रतिरोधक प्रोटीन्स उत्पन्न हो जाते हैं जिनका विन्यास विशिष्ट प्रकार का होता है । उसका विकृतिकण ( denaturation ) नहीं होता है ।
अतः जलाभाव काठिन्य विशिष्ट प्रकार के प्रोटीन्स संश्लेषण की योग्यता पर निर्भर करता है ।
हैन्कल के अनुसार जलाभाव प्रतिरोधता का सम्बन्ध प्रोटोप्लाज्मी प्रत्यास्थता ( protoplasmic elasticity ) से सम्बन्ध रखता है ।
हालांकि उन्होंने बताया कि जलाभाव प्रतिरोधता से सम्बन्धित गुणों जैसे छोटी कोशिकायें न्यूक्लिक एसिड्स की उच्च मात्रा , नयून मंड , तथा उच्चतर शर्करा व कोलाइडी मात्रा , जल न्यूनता के प्रभाव काल में विकसित होती है ।
अतः इस प्रकार की क्रिया — विधियाँ अचानक पड़े सूखे को सहन नहीं करती हैं । कुछ जलाभाव सहिष्णु पौधों में उपापचयी कार्य शुष्कन से आपेक्षित कम प्रभावित होते हैं ।
जैसा कि आरक्त शैवाल पोरफाइरा ( Porphyra ) में प्रकाश — संश्लेषण आर्द्रता प्राप्त होने पर पुनः शीघ्र होने लगता है ।
कुछ दूसरे जलाभाव सहन करने वाले पौधों , जैसे मॉस्स , यीस्ट में जलाभाव से आघातित प्रकाश — संश्लेषण या श्वसन क्रियाविधि को पुनः निर्मित करने की विशेषता होती है ।
कुछ पौधों में चरम जलाभाव सहन या सहिष्णुता की क्षमता विकसित होती है ।
कुछ मॉस्स जलाभाव की अति शुष्कन अवस्था में जीवित रहते हैं तथा जल प्राप्त होने पर पुनः क्रियाशील हो जाते हैं ।
मरुस्थली पौधे जैसे लारिया डाइ — वैरिकेटा ( Larrea divaricata ) कुल भार के 30 प्रतिशत जल की न्यून मात्रा में भी लम्बी अवधि तक जीवित रहते हैं जबकि इन परिस्थितियों में क्रियाशील वृद्धि एवं उपापचयन पूर्णरूपेण रुक जाते हैं ।
इस प्रकार के व्यवहार में किस प्रकार की भौतिक या रासायनिक प्रोटोप्लाज्मीक गुण निहित होते है अभा । तक ज्ञात नहीं है ।
ऐसा प्रतीत होता है कि इनके प्रोटोप्लाज्म में जल बन्ध करने की क्षमता होती है जो ऊतकों द्वारा असाधारण लगिष्णुता ( tenacity ) से धारण की जाती है ।
परिहरणता सामान्यतः इस क्रियाविधि पर आधारित होती है कि “ पौधे के अन्दर आन्तरिक वातावरण उत्पन्न हो जाये जिस व जिससे कि बाह्य वातावरण के अत्यधिक प्रतिबलपूण होने पर भी इसकी कोशिकायें प्रतिबल में न हो ।
उदाहरणतः पत्ती वाष्पोत्सर्जन द्वारा उच्च तापक्रम का परिहरण करती है जिससे आन्तरिक सापकम निम्न ( low ) बना रहता है ।
कैक्टस का पौधा सूखे का परिहरण आन्तरिक जल के सघन संरक्षण द्वारा करता है जिससे वह सूखे से आन्तरिक रूप से प्रभावित नहीं होता है ।
सहनता प्रतिबल को सहन करने की क्षमता होती है जिससे आन्तरिक एवं बाह्य चरम प्रतिबल की अवस्थाओं में जीवित रहे या यहाँ तक कि सामान्य रूप से कार्य करें ।
उदाहरणतः कुछ माँस सूखे के काल में चरम निर्जलीकरण ( desiccation ) को सहन कर सकते हैं तथा जल प्राप्त होने पर पुनः सजीव हो उठते है ।
कुछ शैवाल या जीवाणु जो कि गर्म चस्मों ( hot spring ) में जीवित रह सकते हैं या पनप सकते हैं तथा ऐसे तापक्रम में कार्यशील रह सकते हैं जिस पर दूसरे जीव मर जायेंगे ।
दोनों प्रकार की प्रतिरोधता अधिकतर प्रतिबल परिस्थितियों में विकसित होती है , तथा दोनों प्रकार एक ही पौधे उपस्थिति हो सकती हैं ।
प्रतिबल परिहरण के लिए आवश्यक रूप से विशिष्ट शरीर क्रिया की आवश्यकता नहीं होती है परन्तु केवल यान्त्रिक ( mechanistic ) या आकारिक ( morophological ) प्रयुक्तियों ( devices ) की आवश्यकता होती है।
जिससे पधिा चरम वातावरण के प्रभाव से पलायन ( escape ) कर सकता है । इस प्रकार की प्रातरोधता शरीर क्रिया वैज्ञानिकों के लिये इतना महत्व नहीं रखती है जितना की प्रतिबल सहनता ।
सहनता का अर्थ विशिष्ट शरीर क्रियात्मक क्रियाविधियों का विकास है जिससे जीव उन परिस्थितियों में जीवित रह सकता है जो कि अ — कठोर ( non hardy ) जातियों या व्यक्तियों के लिये घातक या निरोधक हो सकती है ।
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