हरित क्रांति क्या है, अर्थ एवं इसके प्रभाव, उद्देश्य व समस्याएं बताएं
भारत में पहली हरित क्रांति (green revolution in hindi) 1960 के दशक में प्रारंभ हुई जिसका उद्देश्य भारत के कृषि उत्पादन में वृद्धि करके भारत को खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना था ।
हरित क्रांति का क्या अर्थ है? | harit kranti ka arth bataiye
हरित क्रांति (harit kranti) दो शब्दों के योग से बना एक योगिक शब्द है जिसका पहला शब्द है ‘हरित’ दूसरा शब्द है ‘क्रांति’ ।
इस प्रकार, हरित क्रांति का शाब्दिक अर्थ है — कृषि क्षेत्र में होने वाला तीव्र परिवर्तन, ए कैसा परिवर्तन जिससे मैं केवल उत्पादन में वृद्धि हुई वरन् फसलों की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ हो ।
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हरित क्रांति के जनक कौन है? | harit kranti ke janak kaun hai?
दुनिया में हरित क्रान्ति के जनक थे प्रो० नॉरमन बोरलॉग, जिन्हें इसके लिए नोबल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था ।
भारत में हरित क्रान्ति का आरम्भ 1960 के दशक में हुआ । भारत में डा० स्वामीनाथन को इसका जनक माना जाता है ।
भारत में हरित क्रांति कब चलाई गई?
देश में हरित क्रांति दो चरणों में आयी — पहला चरण 1966–67 ई० से 1980–81 ई० तक चला तथा दूसरा चरण 1980–81 ई० से 1996–97 ई० तक चला ।
हरित क्रांति (green revolution in hindi) के पहले चरण के अंतर्गत संकर जाति के बीजों के उपयोग एवं रासायनिक खाद आदि पर जोर रहा जबकि दूसरे चरण में नवीन तकनीकों एवं भारी मशीनों के उपयोग पर बल दिया गया ।
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हरित क्रांति क्या है? | harit kranti kya hai? | green revolution in hindi
हरित क्रांति किसे कहते है — “परम्परागत कृषि से कम उत्पादन एवं दूसरी ओर तेजी से बढ़ती जनसंख्या ने भारत के सामने गंभीर संकट की स्थिति उत्पन्न कर दी थी । इस चुनौति का सामना भारत ने कृषि ढाँचे में आमूल — चूल परिवर्तन करते हुए एक नये प्रकार की कृषि पद्धति को अपना कर खाद्यान्न क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त की इस नवीन कृषि पद्धति को ही हरित क्रांति (green revolution in hindi) कहा गया ।”
हरित क्रांति के प्रभाव | effects of green revolution in hindi
हरित क्रांति के प्रभावों को दो भागों में बांट कर देखा जा सकता है -
- हरित क्रांति के आर्थिक प्रभाव
- हरित क्रांति के सामाजिक प्रभाव
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हरित क्रान्ति की कमियाँ/समस्यायें | limitation of green revolution in hindi
हरित क्रान्ति की प्रमुख समस्यायें -
- हरित क्रान्ति का प्रभाव कुछ विशेष फसलों तक ही सीमित रहा
- पूँजीवादी कृषि को बढ़ावा
- संस्थागत सुधारों की आवश्यकता पर बल नहीं
- श्रम — विभाजन की समस्या
- आय की बढ़ती असमानता
- आवश्यक सुविधाओं का अभाव
- क्षेत्रीय असन्तुलन